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यह भी पापी है
किसी पर अत्याचार करना, जैसे एक पाप है, उसी प्रकार अत्याचार को चुपचाप सह लेना, उसके सामने सिर झुका देना भी एक पाप है । अत्याचार का विरोध होना ही चाहिए । अत्याचार का विरोध न करना, उसे बढ़ावा देना है।
प्रवृत्ति और निवृत्ति
__ आज से नहीं, हजारों वर्षों से प्रवृत्ति और निवृत्ति में संघर्ष चला आ रहा है। कुछ लोग प्रवृत्ति पर बल देते हैं, तो कुछ निवृत्ति पर ! किन्तु, मैं समझता हूँ, यह संघर्ष प्रवृत्ति और निवृत्ति में नहीं है, अपितु अति - प्रवृत्ति और अति - निवृत्ति में है। अस्तु, जहाँ तक हो सके, साधक को दोनों ओर की 'अति' से बचना चाहिए। जहाँ अति निवृत्ति साधक को जड़ एवं निष्क्रिय बनाती है, वहाँ अति प्रवृत्ति व्यर्थ के संघर्षों एवं उलझनों को जन्म देती है। जीवन में साधना का सही मार्ग, दोनों अतियों के बीच में से यथाप्राप्त द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को ध्यान में रखते हुए गुजरता है।
राम और रावण
शक्ति अपने - आप में कोई बुरी चीज नहीं है। परन्तु, शक्ति का प्रभु बन कर रहिए, दास बन कर नहीं। राम शक्ति के प्रभु थे, तो रावण शक्ति का दास । शक्ति दोनों के पास थी। शक्ति बुरी नहीं, शक्ति का दास होना बुरा है।
सबसे बड़ा अपराध
एक अंग्रेज डाक्टर से पूछा गया-"सब से बड़ा रोग कौन है ?"
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अमर वाणी
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