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एक फूल खिला हुआ था । मैंने पूछा " तू यहाँ किस लिए खिला हुआ है ? न कोई देखता है, न सुगन्ध लेता है । आखिर, तुम्हारा क्या उपयोग है यहाँ ?"
उसने उत्तर दिया – “मैं इसलिए नहीं खिलता, कि मुझे कोई आकर देखे या सुगन्ध ले ! यह तो मेरा स्वभाव है । कोई देखे या न देखे, मैं तो खिलूँगा ही ।"
मैं मन में सोचने लगा- "क्या मानव भी प्रकृति से निष्काम कर्म - योग का यह पाठ सीख सकेगा ?"
किसके लिए
सूरज और चाँद चमकते हैं, विश्व को प्रकाश देने के लिए । वृक्ष फूलते हैं और फलते हैं, दूसरों को आनन्दित करने के लिए । नदियाँ मीठा पानी लेकर बहती हैं, दूसरों की प्यास व तपन शान्त करने के लिए | क्या मनुष्य भी दूसरों के लिए जीना सीख सकेगा ?
ईश्वरत्व की अनुभूति
अन्तर्भाव प्रकट एवं विससित हो रहा है या नहीं, इसकी भी पहचान है, यदि तुम पहचान सको तो ! जब तुम क्रोध में नहीं, क्षमा में होते हो, अहंकार में नहीं, नम्रता में होते हो, माया में नहीं, सरलता में होते हो, लोभ में नहीं, सन्तोष में होते हो, तब तुम अन्तर्भाव के प्रकाश में होते हो ! वह पवित्र घड़ी तुम्हारे लिए ईश्वरत्वानुभूति की घड़ी है ।
आत्मदेवो भव :
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