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अन्दर आ सकते हैं ? राम को शैतान के सिंहासन पर बैठाने के लिए रावण को नीचे उतारना ही होगा।
प्रेम और मोह
वह प्रेम है, जिसमें वासना की तनिक - सी भी दुर्गन्ध न हो, दुर्भावना का कीड़ा न हो! जो गंगा की धारा के समान स्वच्छ हो, निर्मल हो, पवित्र हो ! और मोह ? मोह वह है, जिसमें वासना की गंदगी हो, दुर्भावना का कीड़ा हो ! और, जहाँ स्वार्थ का हाहाकार हो, परमार्थ की पुकार न हो !
धर्म और पंथ
सदाचार और संयम धर्म का सूक्ष्म रूप है, जो अन्दर रहता है। और, साम्प्रदायिक क्रिया-काण्ड तथा वेष-भूषा उसका स्थूल रूप है, जिसे हर कोई देख सकता है, जान सकता है। धर्म के सूक्ष्म रूप की रक्षा के लिए बाहर का स्थूल आवरण आवश्यक है। परन्तु, यदि ऐसा हो कि सुन्दर, सचित्र रंग-विरंगा लिफाफा हाथ में आ जाए और खोलने पर पत्र न मिले, तो वह कितना मर्म - भेदक परिहास होगा। आजकल के धर्म - पंथों को इससे बचना चाहिए।
बाह्य क्रिया-काण्ड
अन्तर्भावना से शून्य बाहर का मोहक क्रिया - काण्ड वैसा ही है, जैसा कि प्राण - शून्य मृत शरीर का मोहक रूप । हृदय की गति के अभाव में रूप की मोहकता कितनी देर जीवित रहेगी ? मृत रूप के भाग्य में सड़ना लिखा है, और वह देर-अबेर एक दिन सड़ कर रहेगा।
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अमर • वाणी
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