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गया ? किसने यह दावा किया कि आने वाला युग मुझसे प्रेरणा प्राप्त करेगा ? फिर मनुष्य ही ऐसी इच्छा क्यों करता है ? जरासा काम करके वह गुणगान सुनने के लिए उत्कण्ठित हो जाता है। अपना नाम इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित कराना चाहता है । समझता है, भावी सन्तति उससे प्रेरणा प्राप्त करेगी। वह नहीं सोचता कि दूसरे भी तुम्हारे समान योग्यता रखते हैं और तुमसे भी दो कदम आगे बढ़ सकते हैं।
हमारा लक्ष्य
आत्मा की ओर ध्यान जाता है, तो हम ऊपर ऊठते हैं, ऊँचे चढ़ते हैं। और, जब शरीर की ओर, केवल शरीर की ओर ही ध्यान जाता है, तो नीचे गिरते हैं, नीचे लुढ़कते हैं। बस, इतने से समझ लो, तुम्हें नीचे गिरना है या ऊपर चढ़ना है ?
__ जीवन का रहस्य मैं देख रहा हूँ—पानी पर तैरते, इठलाते, मचलते बुलबुलों को। वे उठते हैं, जल - गर्भ से बाहर आते हैं, कुछ क्षण तैरते हैं। और, फिर सहसा पानी में डूब कर विलीन हो जाते हैं। कितना क्षण - भंगुर जीवन है इनका ? क्या मानव - जीवन का रहस्य भी बुलबुलों की इस क्षण-भंगुर लीला में सन्निहित नहीं है।
अस्तित्व का मोह
नदी की बीच धारा में देखिए, वह क्षुद्र टीला अपने दोनों ओर बहने वाले जल - प्रवाहों के संघर्ष से गल-गल कर, कट-कट कर किस प्रकार अपनी जीवन - लीला समाप्त कर रहा है ?
क्या हम सब भी महाकाल के अविराम प्रवाह में प्रतिपल
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अमर वाणी
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