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वैराग्य
वैराग्य
जब आप किसी पहाड़ की ऊँची चोटी पर चढ़ते हैं, तो नीचे के सब पदार्थ क्षुद्र दिखाई देते हैं। इसी प्रकार जब साधक वैराग्य की, आत्म - सम्मान की ऊंचाई पर चढ़ा होता है, तो संसार के सब वैभव, मान, प्रतिष्ठा, भोग, बिलास, तुच्छ एवं क्षुद्र मालूम होते हैं। संसार का महत्त्व उसकी ओर नीचे झुके रहने तक रहता है, दूर ऊंचे चढ़ जाने पर वह नहीं रहता।
सांसारिक वैभव
अरे, जरा तुम अपनी इच्छाओं और कामनाओं से ऊपर उठो। तुम्हारे ऊपर उठ कर अलग हटने - भर की देर है, इच्छित पदार्थ अपने - आप तुम्हें ढूँढ़ने चले आएँगे। कामनाओं का वैभव तो शरीर की छाया जैसा है। यदि छाया को पकड़ने दौड़ोगे, तो वह हाथ नहीं आएगी, आगे - आगे भागती चली जाएगी। परन्तु, ज्योंही पीठ देकर वापस लौटे नहीं कि वह अपने - आप पीछे-पीछे चुप-चाप भागती चली आएगी।
मनुष्य का अन्वेषण भूमण्डल पर आज तक कितने फूल खिले, महके और मुरझा गए ! परन्तु, किस के जीवन का इतिहास लिखा गया, और पढ़ा
वैराग्य :
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