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करता है, यह एक अमर सत्य है। इसे हमें समझना चाहिए । मनुष्य, अपना शत्रु अपने अन्दर ही क्यों नहीं देखता ?
सूक्ष्म चितन
चिन्तन को सूक्ष्म बनाओ। इतना सूक्ष्म, कि वह आत्मा और अनात्मा के रहस्य में गहराई तक प्रवेश पा सके । लोहे की तीक्ष्ण कील हर जगह जरा से धक्के से फंस सकती है। परन्तु, लोहे की मोटी छड़ ठोकने पर भी प्रवेश नहीं पाती।
अमर - वाणी
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