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सच्चे सुख और शान्ति का कोष अन्दर के आध्यात्मिक सन्तोष में निहित है।
अन्तर्ज्ञान
सच्चा ज्ञान प्रकृति के रहस्यों को खोलने में नहीं हैं, अपितु अपने जीवन के रहस्यों के विश्लेषण में है, उनके जाँचने-परखने में है। प्रकृति उतनी रहस्यमयी नहीं है, जितनी अन्तरंग चेतना।
क्रियाकांड और साधना
बाह्य क्रियाकांडों की साधना, साधना है, साध्य नहीं । यदि ये क्रियाकांड हमें नम्र और सरल नहीं बनाते, आत्म-तत्त्व के पाने में सहायता नहीं पहुँचाते, तो फिर भार हैं, व्यर्थ हैं ।
जड़ और चेतन
वह, वह है, जो अपने को आप ही जानता है। दूसरा कौन है उसे जानने वाला ? इस संसार में दो भाई विचरण कर रहे हैं, उनमें एक सुआँखा है तो दूसरा अंधा। क्या आप जान गए, ये कौन हैं ? चेतन सुआँखा है, तो जड़ अंधा । बस, अब सर्वोपरि सत्य का निर्णय हो गया।
शत्रु और मित्र लोग कहते हैं, राम ने रावण को मारा । परन्तु, क्या यह सच है ? रावण को मारने वाला स्वयं रावण ही था, और कोई नहीं। मनुष्य का उद्धार एवं संहार, उसका अपना भला-बुरा आचरण ही
ज्ञान:
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