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मच्छर है, वहाँ अन्दर में गरुड़ है। बाहर की उड़ान त्याग कर अन्दर की उड़ान अपनाने में ही मनुष्य की महत्ता है।
आत्मा और देह आत्मा नित्य है, देह अनित्य है । आत्मा, अजर-अमर है, देह क्षणभंगुर नाशवान है । आत्मा पवित्र है, देह अपवित्र है । आत्मा रोग, शोक, दुःख, द्वन्द्व से परे है, देह इनसे घिरा है ।
आत्मानुभूति और कालमर्यादा आत्मानुभूति के लिए कितना समय अपेक्षित है ? यह प्रश्न ही अनावश्यक है। वैसे तो अनन्त काल गुजर गया है, आज तक कुछ भी प्रकाश नहीं मिला । और जब प्रकाश मिलता है, तो क्षणभर में मिल जाता है । हजार वर्ष की नींद, जब टूटती, तो मिनिटों में टूटती है। क्या मनुष्य को जगने में बरसों लगते हैं ?
आजकल की साधना एक मनुष्य छेद वाला फूटा घड़ा लेकर क्षीर-सागर में अमृतरस भरने गया। जब तक वह घड़ा क्षीर-सागर में डूबा रहा, तब तक तो भरा हुआ मालूम देता रहा, पर ज्योंही ऊपर उठाया कि खाली ! आजकल साधकों के साधना - घट की भी यही दशा है । विकारों के छेद बन्द नहीं करते, फिर साधना - घट आध्यात्मिक रस से भरे, तो कैसे भरे ?
आत्म - शोधन:
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