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श्रमण - संस्कृति
महावीर का सन्देश
श्रमण - संस्कृति के अमर देवता भगवान् महावीर का सन्देश है कि- क्रोध को क्षमा से जीतो, अभिमान को नम्रता से जीतो, माया को सरलता से जीतो, और लोभ को सन्तोष से जीतो !
जब हमारा प्रेम विद्वष पर विजय प्राप्त कर सके, हमारा अनुरोध विरोध को जीत सके और हमारी साधुता असाधुता को झुका सके, तभी हम धर्म के सच्चे अनुयायी हो सकेंगे, सच्चे मानव बन सकेंगे।
श्रमण - संस्कृति
श्रमण - संस्कृति की गंभीर वाणी हजारों वर्षों से जन-मन में गूंजती आ रही है कि-यह अनमोल मानव - जीवन भौतिक जगत् की अँधेरी गलियों में भटकने के लिए नहीं है, भोग - विलास की गन्दी नालियों में कीड़ों की तरह कुलबुलाने के लिए नहीं है। मानव ! तेरे जीवन का लक्ष्य तू है, तेरी मानवता है। वह मानवता, जो हिमालय की बुलंद चोटियों से भी ऊँची, तथा महान् है । क्या तू इस क्षणभंगुर संसार की पुत्रैषणा, वित्तषणा और लोकेषणा
श्रमण - संस्कृति:
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