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नहीं हो सकता कि कुएँ में पानी और हो, और डोल में और हो ! मन एक कुआ है, विचार उसमें पानी है । मन के विचार ही अन्ततोगत्वा वाणी में उतरते हैं, और फिर कर्म में । अतएव वाणी और कर्म को पवित्र बनाना है, तो सर्व-प्रथम मन को ही पवित्र बनाना चाहिए । आचार का मूल - स्रोत विचार है, और विचार की जन्मभूमि मन है । मन को शुभ संकल्पों की सुगन्ध से भरो, यदि बाहर के जीवन में आचार की सुगन्ध को महकाना है तो !
भाव-लहरी
वह दिन धन्य होगा, जिस दिन हम सुख - दुःख के घेरे को तोड़ेंगे, जीवन-मरण के स्तर से ऊपर उठेगे, और कभी क्षीण नहीं होने वाले आत्मा के अनन्त सौन्दर्य को प्राप्त करेंगे।
भावना
मनुष्य का हृदय अच्छाई और बुराई के संघर्ष का अखाड़ा है। उस धन्य दिवस की प्रतीक्षा है, जिस दिन भलाई, बारई पर विजय प्राप्त कर मनुष्य को अपने वास्तविक अर्थों में मनुष्य बना सकेगी।
aantilitility
भावना:
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