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भावना
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मैं आत्मा हूँ, ईश्वरत्व के अनन्तानन्त तेज से परिपूर्ण ? मैं स्वयं अपने - आप ही अपने भाग्य का विधाता हूँ ? भला, मैं कभी किसी दूसरे के हाथ का खिलौना बन सकता हूँ ? कभी नहीं ! कभी नहीं !! कभी नहीं !!!
विचार और जीवन
आप का भविष्य आपके वर्तमान विचार में है। आप अपने सम्बन्ध में आज जो कुछ भी सोचते हैं, विचारते हैं, कल आप ठीक हूबहू वही बन जाएँगे। अपने को नीच, अधम, पापी समझने वाला नीच, अधम, पापी बनता है, और अपने को श्रेष्ठ, पवित्र, धर्मात्मा समझने वाला श्रेष्ठ, पवित्र, धर्मात्मा बनता है। मनुष्य का जीवन उसके अपने विचारों का प्रतिबिम्ब है। एक दार्शनिक ठीक ही कहता है-'भाग्य का दूसरा नाम विचार है।'
अपने-आप को समझिए
आप अपने को तुच्छ, दीन-हीन और पापी क्यों समझते हैं ?
भावना:
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