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किसी प्राणी को मारना अपने को मारना है । और दूसरे प्राणी को बचाना अपने को बचाना है । जब तक यह गम्भीर सत्य अन्तः करण की गहराई में न बैठे, तब तक अहिंसा कैसी ?
अहिंसा का सफल प्रयोग
अहिंसा और प्रेम की शक्ति दुर्बल तथा अशक्त तभी तक मालूम देती है, जब तक वह अविकसित है । जल अग्नि पर अवश्य विजय प्राप्त करता है, परन्तु तभी, जबकि उसका खुलकर पूरी शक्ति से प्रयोग किया जाए ! वन में दावानल लगी हो, अगर कोई चुल्लूभर पानी उस पर डाले, तो क्या होगा ? जलते दावानल पर वर्षा की झड़ी लगे, तो क्या अग्नि की एक चिनगारी भी शेष रहेगी ? आज के लोग अहिंसा का चुल्लू भर चुल्लू-भर क्या बूंद जितना तो प्रयोग करते हैं और चाहते हैं उससे घृणा तथा अहिंसा का दावानल बुझाना ! वह बुझे तो कैसे बुझे ? प्रेम और अहिंसा की झड़ी लगाइए, फिर देखिए, दावानल बुझता है या नहीं ?
पाशविक शक्ति का प्रतिकार
आपको एक आदमी ने कुत्ते की तरह काट खाया और बदले में आपने भी उसे कुत्ते की तरह काट खाया। अब मैं इस विचार में हैं कि उसमें और आप में अन्तर ही क्या रहा ? आप दोनों ही कुत्ते की भूमिका से आगे नहीं बढ़ सके । क्या पाशविक शक्ति का मुकाबला पाशविकता से ही किया जा सकता है, मानवी शक्ति से नहीं ? पाशविक शक्ति के कुचक्र में फंसी दुनिया के उद्धार के लिए मानवी - शक्ति को जागृत कीजिए । आखिर, इसके बिना गुजारा नहीं है। आग को बुझाने के लिए आग काम नहीं आएगी, पानी ही काम आएगा ।
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अमर वाणी
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