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में ही अपने कल्याण की पवित्र आकांक्षा विकसित होती है, तब जीवित शान्ति का जन्म होता है । और, मानव-समाज स्वर्ग भूमि पर उतार लाता है ।
मनुष्य ने मनुष्य को नहीं पहचाना
मनुष्य ने आकाश का पता लगाया, भूमि का पता लगाया, सागर की गहराई का पता लगाया । उसने विश्व के सबसे क्षुद्रपिण्ड परमाणु पर भी हाथ डाला, उसकी शक्ति का पता लगाया और परमाणु बम के आविष्कार ने दुनिया में हा - हाकार मचा दिया ! किंबहुना, आज के मनुष्य ने विज्ञान की आँख लगाकर प्रकृति का कण-कण टटोल डाला, परन्तु दुर्भाग्य से मनुष्य ने पास खड़े अपने ही समानाकृति जाति-बन्धु आदमी को नहीं पहचाना |
विकास या ह्रास
देखिए, वह आसमान में कितनी ऊँचाई पर हवाई जहाज ता हुआ जा रहा है ! हाँ, आज का मनुष्य विज्ञान के पंख लगाकर हवा में उड़ रहा है । ठीक है, हवा में तो उड़ रहा है, पर जमीन पर चलना भूल रहा है ।
मनुष्य का पागलपन
मनुष्य मकान बनाता है, ऊँची-ऊँची दीवारें खड़ी करता है, छत बनाता है, दरवाजे लगाता है, खिड़कियाँ खुलवाता है, और सबको बन्द करवा देता है । फिर सारे घर में पागल की तरह दौड़ता फिरता है । चिल्लाता है, हाय ! यहाँ सूरज की धूप क्यों नहीं आती ? अन्धकार क्यों है ? सील और सड़ांध क्यों है ? कोई पूछे, भले आदमी ! सूर्य तो चमक ही रहा है, हवा भी बह रही है !
अमर-वाणी
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