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प्रकाशक की ओर से
जैन परम्परा में मंगलकारी सन्त सतियों का प्रातःकाल में स्मरण करने की पद्धति है । श्रद्धालु श्रावक श्राविका गण एवं सन्त-सतियाँ बड़े भक्ति भाव से इन महापुरुषों का स्मरण करते हैं । भागमोक महापुरुषों का स्मरण दिलाने वाली अनेक स्तुतियों व नामावलियाँ हमारे पूज्य पुरुषों ने पद्य के रूप में बनाई हैं । किन्तु उनके चरित्र पर सम्पूर्ण प्रकाश डालनेवाला विशद प्रन्थ हिन्दी भाषा में बहुत कम होने से, इस उद्देश्य को लेकर पंडित मुनि श्री हस्तीमलजी म. साहब ने 'भागम के अनमोल रत्न' नामक ग्रन्थ की संयोजना की। उसके अन्तर्गत ४५ आगमों में आये हुए सन्त-सतियों के आदर्श जीवनी को नये ढंग से व सरल हिन्दी में पाठकों के समक्ष रखा है।
इस अन्य के प्रकाशन में उदारचेता सज्जनों का आर्थिक सहयोग मिला है अतएव वे धन्यवाद के पात्र हैं।
प्रस्तुत अन्य के सम्पादक पण्डित मुनि श्री हस्तीमलजी महाराज साहब के हम अत्यन्त भाभारी है। जिन के परिश्रम के फलस्वरूप यह उपयोगी प्रकाशन हो सका है। इस ग्रन्थ को संशोधनपूर्ण और सुन्दर बनाने का यश श्री रूपेन्द्रकुमारजी को ही है एवं इसलिये वे धन्यवाद के पात्र हैं। .. . श्रीमान् प्यारचन्द्रजी साहब संचेती को भी इस अवसर पर हम नहीं भूल सकते, क्योंकि उन्होंने इस कार्य को सफल बनाने के लिये भच्छा प्रयत्न किया है। श्रीरामानन्द प्रेस के अधिकारी व कर्मचारियों ने भी इस ग्रन्थ के प्रकाशन में हमारी हृदय से सहायता को हैं उनके सहयोग से ही प्रस्तुत पुस्तक इतनी जल्दी आपके हाथों में पहुंच पाई है। ___अन्त में मै उन सभी सजनों के प्रति आभार प्रदर्शन करता हूँ जिन्होंने इस प्रन्थ को प्रकाश में लाने के लिए आर्थिक, शारीरिक एवं बौद्धिक सहयोग प्रदान कर हमें उपकृत किया है।
मैं आशा करता हूँ कि यह प्रकाशन पाठकों को जागृति की नव प्रेरणा प्रदान करेगा ।
धनराज काठोरी व्यवस्थापक