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चातुर्मास की विनती को लेकर आया । उनके भत्याग्रह पर सानन्द में चातुर्मास व्यतीत करने की स्वीकृति दे दी'। समय पर चातुर्मासार्थ सानन्द पहुँच गये । इस चातुर्मास काल में सानन्द संघ ने खूब सेवा की और धर्मवृद्धि के अनेक कार्य किये । गुरुदेव के स्वर्गवास के बाद उन्हीं की भावना को साकार रूप देने की प्रबल इच्छा तो थी ही, किन्तु भनुकूल संयोगों के अभाव में यह कार्य नहीं कर पाया। चातुर्मास के बीच श्रावकों के समक्ष मैंने अपने गुरुदेव की भावना को व्यक्त किया तो स्थानीय सघ ने इसका उत्साह-जनक जवाब दिया । उनके 'आर्थिक सहयोग से मैने यह कार्य प्रारंभ कर किया । ४५ आगों से तथा आगमिक साहित्य से चुने हुए श्रमण श्रमणियों के चरित्रों का अपनी बुद्धि के अनुसार संकलन कर लिया । फलस्वरूप आगमके अनमोल रत्न नामक यह पुस्तक पाठकोंके सामने प्रस्तुत कर सका हूँ। यह संकलन कैसा बना यह पाठकों पर ही छोड़ता हूँ ।
___ इस प्रकार के संकलन को तैयार करने का मेरा प्रथम प्रयास है इसमें अनेक भूलों का रहना संभव है किन्तु, पाठक गण मेरी त्रुटियों के लिये क्षमा प्रदान करेंगे ऐसा विश्वास है।
. मुनि हस्तीमल (मेवाड़ी)