Book Title: Agam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 7 www.kobatirth.org सुपक्खंधी-१, अवणं- 9 ताओ अंगपडियारियाओ धारिजिं देविं नवहं मामागं बहुपडिपुत्राणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पया पासंति पासिता सिग्धं तुरियं चवलं बेइयं जेणेव सेणिए रावा तेणेव उवागच्छति वागच्छिता सेणियं रावं जएणं विजएणं वद्धावेति वद्धावंत्ता करयलपरिगहियं सिरसवत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं बबासी एवं खलु देवाणुप्पिया धारिणी देवी नवहं मासाणं बहुपडिपुत्राणं जाब सव्वंगसुदरं दारगं पयाचा तं णं अम्हे देवाणुष्पिबाणं पिवं निवेएमां पिवं मे भवउ नए णं स संगिए राया तासि अंगपडियारियाणं अंतिए एयमहं सोचा निसम्मं तु ता अंगपडियारिया ओ गहुरेहिं वयणेहिं विलेण व पुष्क-वत्थ-गंध-नालंकारणं सक्कारे सम्माड मत्थयधीयाओ करें पुत्ताणुपुत्तियं वित्तिं कप्पे कपेत्ता पडिविसी नए में से रोगिएरा [पचसकालसमंसि] कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ सहावेत्ता एवं वदासी विपामेव भी देवाणुपिया रायगिहं नगरं आसिय[सम्मनिओयतित्तं सिंघाडग-जाव पहेसु आसित सित सुइ सम्म - उत्तरायण वीहियं मंचाइमंचकलियं नानाविहराग अभियन्झय- पाइपद्वारा गांड लाउलोड्य महियं गोसीस सरसरत्त- चंदण-दद्दर-दिष्णपचंगुलितलं उचचियचंद्रणकलां चंदणघडसुकय-तोरण- पडिदुबारदेसभायं आसत्तोसत्तविउल - वट्ट वग्धारि मलदान कलावं पंचवणंसरस-सुरभिमुक्कपुप्फपुंजांववार - कलियं कालागुरु-जाब गंधवट्टिभूचं नह-नटग- जल-मात्रमुट्ठिय-बेलंग-कहकहग-पवग-लासग आइक्वगतंख मंख-तूपइल्ल- तुंबवोणिय अणेगतालायर | परिणीयं करेह कारवेह य चारणपरिोहणं करह करता माशुम्भाणवणं करेह करेला एयगायत्तिवं पचपिंणह पचविनंति तए गं से सेगिए राया अठ्ठारसरणि पणीओ सद्दा सद्दाता एवं बयासी- गहणं तुभे देवागुपिंचा राग नगरे अभितरवाहिरिए उत्सुकं उक्करं अभडप्पबैसं अवंडिम- कुइंडियं अधरिमं अधागिनं अनुपमुइंगं अनिलापदामं गणियावरनाइडञ्जकलियं अणेगतालावरापुचरियं प्रमुइक्कीलियाभिरामं जहारिहं टिइवडिय दसदेसि करेह कारवेह व एवनाशत्तियं पचणिह तेवि तहेव करेति कतहेव पचष्पिणति तए से सेणिए या बाहिरियाए उबड्डाणसालाए सीहासावर गए पुरत्याभिमुहे सणसणे सतिपहि य साहस्सिएहि यसयताहस्सिएहि व दाहिं दलयमाणे दतयमाणे पडिच्छमाणे पाइन्टमाणे एवं चणं विहरड़ - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १५ तएण तस्स अम्मापियरी पढमे दिवसे ठितिपडियं करेति वितिए दिवसे जागरिये करेति ततिए दिवसे चंदसूरदंसणियं करेंति एवामेव निवत्तं असुइजावकम्मकरणे संपत्ते वारसाहं विपुलं असण-पाण-खाइम- साइमं उवक्खडावेंति उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग- लवण- संबंधिपरिवाणं बलं च बहवे गणनायग- [दंडनायग- राईसर- तलवर - माडंबिय कोडुंबिय - पंति - महामंति- गणग दोवारिय- अमञ्च - चेड- पीढमहू-नगर-निगम-सेट्टि सेणावइ-सत्यवाह दूय-संधिवाले ! आमंतिओ पच्छा पहाया कचवलिक कपकोज्य-मंगलपायच्छित्ता) सव्वालं- कारविभूसिया महइमहालयंसि भोवणमंडवंसि तं विपुलं असणं पागं खाइमं साइमं मित्तनाइ गणनायग जावसद्धि आएमाणा विलाएमाणा परिभाषमाणा परिभुजेमाणा एवं च णं विहरति जिमिवभुतरणावि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमगुइया तं मित्तनाइ- नियगसवण- संबंधिपरिवणं बलं च बहवे गणनायग जाब संधिवाते विपुलेणं पुष्फ- गंध-मलालंकारेण सक्कारेति सम्माति सकुकारेत्ता सम्माणेत्ता एवं बबासी जम्हा णं अम्हे इमस्स दारगस्स गटभत्यस्स चेव For Private And Personal Use Only

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