Book Title: Agam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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सुपखंधो-१, अज्ययण-८ पोयवहणस्स एगदेसंसि वत्थेणं भूमि पमज्जइ पमज्जित्ता टाणं ठाइ ठाइत्ता करयल-[परिगहिवं सिरसावत्तं मत्यए अंजलिं कट्ट] एवं क्यासी-नमोत्यु णं अरहंताणं भगवताणं जाव सिद्धिगइनामधेचं ठाणं संपत्ताणं जइ णं हं एतो उवसग्गाओ मुंचामि तो मे कप्पइ पारित: अह णं एत्तो उवसग्गाओ न मुंचापि तो मे तहा पचक्खाएयब्वे ति कट्ठ सागारं भत्त पचक्वाइ तए णं से पिसाबरूवे जेणेव अरहण्णगे समणोवासए तेणेव उवागच्छद उवागच्छित्ता अरहण्णगं एवं वयासी-हंभो अरहण्णगा अपस्थियपत्थया [दुरंत-पंत-लखणा हीणपुण्ण-चाउद्दसिया सिरि-हिरिधिइ-कित्ति परिवजिया नो खलु कप्पड़ तव सील-व्यय- गुण-वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए 7 मंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिचइत्तए वा तं जइणं तुम माल-ब्बव गुण-वेरमण पञ्चखाण-पोसहोववासाई न चालेसि न खोभेसिन खंडेसि व भंजेसि न उज्झसि| न परिचयसि तो ते अहं एवं पोयवहणं दोहिं अंगुलियाहिं गेण्हामि गेण्हिता सत्तट्ठलतलप्पमाणेत्ताई उड्ढं वेहासं उविहामि अंतोजलंसि निव्वोलेमि जेणं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे असमाहिपत्ते अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्ञसि तएणं से अरहणगे सपणोवासए तं देव मणसा चेव एवं वयासी-अहं णं देवाणुप्पिया अरहण्णए नामं समणोवासए अहिगयजीवाजीवे नो खलु अहं सक्के केणइ देवेण वा [दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेणं वा कित्ररेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधब्बेण वा निगंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा तुमं णं जा सद्धा तं करेहि त्ति कटु अभीए जाव अभिन्नएहराग नवणवणे अीण-विमण-माणसे निचले निष्फंदे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ तए णं से दिव्वे पिसावरूवे आहष्णगं समणोवासगं दोच्चंपि तचंपि एवं बयासी-हंभो अरहण्णगा जाव धम्मज्झाणोयगए विहरइ तए णं से दिव्ये पिसायरवे आहष्णगं धम्मझाणोवग यं पासइ पासित्ता वलियतरागं आसुरत्ते तं पोयवहणं दोहिं अंगुलियहि गेण्हइ गेण्हिता सतद्रुतल [प्पमाणपेत्ताई उड्ढे वेहासं उबिहइ उब्विहिता अरहण्णगं एवं वयासी-हंभो अरहण्णगा अपत्थेियपत्थवा
नो खलु कप्पइ तव सील-व्वय-[गुण वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासई चालित्तए वा खोभितए वा खंडितए वा भंजित्तए या उज्झित्तए वा परिचइत्तए वा तं जइ णं तुमं सीलब्रयगुण-वेरमण-पचखाण-पोसहोचवासई न चालेसि न खोभेसि न खंडेसि न भंजेसि न उज्झसि न परिचयसि तो ते अहं एयं पोयवहणं अंतो जलंसि निब्बोलेमि जेणं तमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे असमाहिपत्ते अकाले चेव जीवियाओ ववरोविजासि तएणं से अरहण्णगे समणोवासए तं देवं मणसा चेव एवं वयासी-अहं णं देवाणुपिया अरहण्णए नाम समणोवासए-अहिगयजीवाजीवे नो खलु अहं सक्के केणइ देवेणं वा दानवेण या जखेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेणं वा गंधव्वेण वा निग्गंधाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा तुमं णंजा सद्धा तं करेहि त्ति कट्ट अभीए जाव अभिन्नमुहराग-नयनवण्णे अदीण-विमण-माणसे निचले निष्फंदे तुसिणीए धम्म-झाणोवगए विहरइ तए णं से पिसायरूवे अरहण्णगं जाहे नो संचाएइ निग्गंथाओ पावयणाओ चालितए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे संते [तंते परितंते] निविण्णे तं पोरवहणं सणियं-सणियं उवरिं जलस्स टवेइ ठवेत्ता तं दिव्वं पिसायरूवं पडिसाहरेइ पडिसाहरेत्ता दिव्वं देवरूवं विउब्बइ-अंतलिक्ख पडिवत्रे सखिखिणीयाई दसद्धवण्णाई वत्थाई पवरं परिहिए अरहण्णगं समणोवासगं एवं वयासी-हं मो अरहण्णगा समणोवासया धनेसि णं तुमं
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