Book Title: Agam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 109
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० नायाधम्मकहाओ - 91-19२/१४ अंतरा गालावैपाणे अंतरा पविखवावेमाणे अंतरा य संयसावेमाणे सत्तसत्त य रोइंदियाई परिवसावेइ तए णं से फरिहोदए सत्तमंसि सत्तयंसि परिणममाणंसि उदगरयणे जाए यावि होत्था-अच्छे पत्थे जचे तणुए फालियवण्णाभे वण्णेणं उववेए गंधेणं उवयेए सेणं उबवेए फासेणं उववेए आसायणिने [विसायणिज्जे पीणणिजे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिजे] सब्धिदियगाय पल्हायणिजे तए णं सुबुद्धी जेणेव से उदगरयणे तेणे उवागच्छइ उवागछित्ता करनयमि आसादेह आसादेत्तातं उदगरयणं वण्णेणं उववेयं गंधेणंउववेयं रसेणं उववेयं फागण उयवयं आसायणिलं [विसायणिशंपीणणिजं दीवणिजंदप्पणिज मयणिजं विंहणिज्ज] सबिदियगाय-पल्हाणिज्जंजाणित्ता हट्ठतुढे दहूहि उदगसंभारणिजहिं दव्वेहिं संभारेइ संमारेत्ता जियसतुस्स रणों पाणियरियं सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं ययासी-तुपं णं देवाणुप्पिया इमं उदगरवणं गेण्हाहि गेण्हित्ता जियसत्तुस्स रणे भोयणबेलाए उवणेजासि तए णं से पाणिय-घरिए सुबुद्धिस्स एयमढे पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता तं उदगरवणं गेण्हइ गेण्हित्ता जिवसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवट्ठवेइ तए णं से जियसत्तू राया तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं आसाएमाणे [विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे एवं च णं] विहरइ जिमियभुत्तंत्तरागए विय णं [समाणे आवंत चोखे। परमसुइभएतसि उदगरयसि जायविम्हए ते बहवे राईसर जाव सत्थवाहपमिइओ एवं ययासी-अहः णं देवाणुप्पिया इमे उदगरयणे अच्छे जाव सव्विदियगाय-पल्हायणिजे तए णं ते बहवे राईसर जाव सन्थावहपभिइओ एवं वयासी-तहेव णं सामी जणं तुब्भे वयह-[इमे उदगरयणे अच्छे जाव सबिदियगाय]-पल्हावणिज्जे तए णं जियसत्तू राया पाणिय-धरियं सदावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस गं तुमे देवाणुप्पिया उदगरयणे कओ आसदित्ते तए णं से पाणिय-धरिए जियस एवं यथासी-एस णं सामी भए उदगरयणे सुबुद्धिस्स अंतिवाओ आसादिते तए णं जिवसत्तू सुर्द्धि अमचं सद्दावेइ सद्दावेता एवं वयासी-अहो णं सुबुद्धी केणं कारणेणं अहं तव अणिढे अकते अप्पिए अमणुण्णे अमणाणे जेणं तुमं मम कलाकल्लिं मोयणवेलाए इमं उदगरवणं न उवहवेसि तं एस णं तुमे देवाणुप्पिया उदगरयणे कओ उवलद्धे ते णं सुथुद्धि जियसत्तुं एवं क्यासी-एस णं सामी से फरिडोदए ते णं से जियसत्तू सुयुद्धिं एवं वयासी-केणं कारणेणं सुबुद्धी एस से फरिहोदए तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी-एवं खलु सामी तुझे तया मम एवमाइक्खमाणस्स भासमाणस्स पन्नवेमाणस्स परूवेमाणस्स एवमटुं नो सद्दहह तए णं मम इमेयारूवे अन्झस्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपन्नित्था-अहो णं जियसत्तू राया संते [तच्चे तहिए अवितहे समूए जिणपन्नत्ते] भावे नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ तं सेयं खलु मम जियसत्तुस्स रपणो संताण तघ्राणं तहियाणं अवितहाणं] सम्भूयाणं जिणपन्नत्ताणं भावाणं अभिगमणट्टयाए एयमटुं उवइजावेता-एवं संपेहेमि संपेहेता तं चेव जाव पाणिय-धरियं सद्दावेमि सद्दावेत्ता एवं वदामि-तुमंणं देवापुप्पिया उदगरयणं जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवणेहिं तं एणं कारणेणं सामी एस से फरिहोदर तए णं जियप्तत्तु राया सुदुद्धिस्स एवमाइक्खमाणस्स भासपाणस्स पनवेमाणम्स पापयाणस्स एवमटुं नो सदहइनो पत्तियइ नो रोएइ असद्दहपाणे अपत्तियमाणे अरोहएमाणे अमितरटाणिग्ने पुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुटभे देवाणुप्पिया अंतरावणाओ ना घर एडएय गेण्हह जाय उदगसंभारणिनेहिं दब्वेहिं संभारेह तेवि तहेव संभारेंति संभारेत्ता For Private And Personal Use Only

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