Book Title: Agam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 168
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुयांपो १, अज्झयणं - १९ १५९ रण्णो एवमङ्कं नो आढाइ नो परियाणाइ तुसिणीए संचिवइ तए णं से पुंडरीए राया कंडरीचं दोघंपि तच्चपि एवं वयासी- [माणं तुमं भाउया इयाणि मुंडे मवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वयाहि अहं णं तुमं महारायाभिसेएणं अभिसिंचामि तए णं से कंडरीए पुंडरीयस्स रण्णो एयमदूंनो आढाइ नो परियाणाई] तुसिणीए संचिवइ तए णं पुंडरीए कंडरीयकुमारं जाहे नो संचाएइ बहूहिं आघवणाहिं य पत्रवणाहि व सण्णवणाहि य विष्णवणाहि य आघवित्तए वा पत्रवित्तए वा सणवित्तए वा विवित वा ताहे अकामए चेव एवम अनुमन्त्रित्था जाव निक्खमणाभिसेणं अभिसिंचइ जावराणं सीसभिक्खं दलयइ पव्वइए अणगारे जाए] एक्कारसंगवी, तए णं घेरा भगवंतो अण्णया कयाई पुडरीगिणीओ नवरीओ नलिनिवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमंति बहिया जणवयवहारं विहरति । १४८/- 142 (२१५) तए णं तस्स कंडरीयस्स अणगारस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य [तुच्छेहि य तूहेहि य असेहि य विरसेहि य सीएहि य उन्हेहि य कालाइक्कतेहि य पमाणाइक्कतेहि य निचं पाणभोयणेहि व पयइसुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउदमया- उजला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा पित्तज्जर-परिगयसरीरे] दाहवक्तीए यावि विहरइ तए गं थेरा अण्णा कयाइ जेणेव पोंडरीगिणी नचरी तेणेव उवागच्छंति उवाग्गच्छित्ता नतिणीवणे समोसढा पुंडरीए निग्गए धम्मं सुणेइ तए णं पुंडरीए राया धम्मं सोच्चा जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ ज्वागच्छित्ता कंडरीयं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता कंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगं सव्वाबाहं सरोगं पासइ पासित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता धेरे भगवंते वंदइ नमसई वंदिता नपुंसिता एवं वयासी- अहणणं भंते कंडरीयस्स अणगास्स अहापवत्ते हिं ओसह-भेसज-[भत्त-पाणेहिं] तेगिच्छं आउंटामि तं तुम्मे णं भंते मम जाणसालासु समोसरह तए प थेरा भगवंतो पुंडरीयस्स एयमठ्ठे पडिसुणेति पडिसुणेत्ता जेणेव पुंडरीयस्स रण्णो जाणसाला तेणेव उदागच्छंति उवाग्छछत्ता फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेजा-संथारगं] उवसंपजित्ता णं विहरति तए णं पुंडरीए राया [तेगिच्छिए सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं बयासी तुब्मेणं देवाणुप्पिया कंडरीयस्स फासू-एसणिज्रेणं ओसह भेसन भत्त-पाणेणं तेगिच्छं आउट्टेह तए णं ते तेगिच्छिया पुंडरीएणं रणा एवं वृत्ता समाणा हद्वतुट्टा कंडरीयस्स अहापवतेहिं ओसह-भेसन भत्त- पाणेहि तेगिच्छं आउट्टेति मजपाणगं च से उवदिसंति तए णं तस्स कंडरीयस्स अहापयत्तेहिं ओसह-भेसजभत्त-पाणेहिं मजपाणएण य से रोगाद्यंके उवसंते यावि होत्या हट्टे बलियसरीरे जाए ववगयरोगायंके] तए णं घेरा भगवंतो पुंडरीवं रायं आपुच्छंति आपुच्छिता बहिया जणवयविहारं बिहरंति तए णं सेकंडरीए ताओ रोयायंकाओ विप्पमुक्के समाणे तंसि मणुष्णंसि असण- पाण- खाइमसाइमंसि मुछिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे नो संचाएइ पुंडरीयं आपुच्छित्ता बहिया अभुञ्जएणं [ जणवयविहारेणं] विहरित्तए तत्थेव ओसने जाए तए णं से पुंडरीए इमीसे कहाए लखड़े समाणे हाए अंतेउरपरियाल - संपरिबुडे जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता कंडरीयं तिक्खुत्ती आयाहिण-पयाहिणं करेइ करेत्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता एवं ययासी-धनेसि णं तुमं देवाणुप्पिया कयत्वे कयपुत्रे कयलक्खणे सुलद्धे णं देवाणुप्पिया तव माणुस्सए जम्म- जीवियकफले जे गं तुमं रज्जं च [ रटुं च कोसं च कोड्डागारं च बलं च वाहणं च पुरं च] अंतेउरं च विछत्ता विगोवइत्ता (दाणं च दाइयाणं परिभायइत्ता मुंडे मवित्ता अगाराओ अणगारियं] पव्वइए अहम्णं For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182