Book Title: Agam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 104
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुषक्खंघो-१, अज्झयणं- ९ १५ निस्संसा कलुणं जिणरक्खियं सकलुसा सेलगपट्टाहिं ओवयंतं दास मओसि त्ति जंपमाणी अपत्तं सागरसलिलं गेण्डिय वाहाहिं आरसंतं उडूढं उच्चिहड़ अंबरतले ओवयमाणं च मंडलग्गेणं पडिच्छित्ता नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पागासेण असिवरेण खंडाखंडि करेइ करेत्ता तत्येव विलयमाणं तस्स य सरस- वहियस्स पंतूणं अंगभंगाई सरुहिराई उक्खितबलिं चउद्दिसिं करे सा पंजली पहिला ९91-84 ( १३५ ) एवामेव समणाउसो जो अम्हं निग्गंधो वा निग्गंधी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पुनरवि माणुस्सए कामभोगे आसयइ पत्थर पीहेइ अभिलस से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं साविवाणं य हीलणिजे जाव चाउरंतं संसारकंतारं भुजो - भुजो अनुपरियट्टिस्सइ जहा व से जिणरखिए |१२1-85 ( १३६) छल्लिओ अवयक्खंतो निरवयक्खो गओ अविग्धेणं तम्हा पवयणसारे निरावयक्खेणं भावयच्वं (१३७) भोगे अवयक्खता पति संसारसागरे धोरे ||३०||-1 भोगेहिं निरवयक्खा तरंति संसारकंतारं ॥३१॥-2 (१३८) तए णं सा रयणदीवदेवया जेणेव जिणपालिए तेणेच उवागच्छइ बहूहिं अनुलोमेहि य पडिलोहि य खरएहि व मउएहि य सिंगारेहि कलुणेहि य उवसग्गेहि जाहे नो संचाएइ चालित वा खोभित्तए वा विपरिणामित्राए वा ताहे संता तंता परितंता निब्विण्णा समाणा जामेव दिसिं पाउब्या तामेव दिसिं पडिगया तए णं से सेलए जक्खे जिणपालिएण सद्धिं लवणसमुद्द मज्झमज्झेणं वीईवयइ बीईवइत्ता जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता चंपाए नथरीए अगुज्जाजाणंसि जिणपालियं पट्टाओ ओबारेइ ओयारेत्ता एवं व्यासी-एस णं देवाणुप्पिया चंपा नयरी दीसइ ति कट्टु जिणपालियं पुच्छइ जानेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए । १३। - 6 (१३९) तए णं से जिणपालिए चंपं नयरि अनुपविसइ अनुपविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव अम्मापिचरी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं रोयमा णे | कंदमाणे सोयमाणे तिप्पमाणे] बिलवमाणे जिणरक्खिय-वायत्तिं निवेदेइ तए णं जिणपालिए अम्पापियरी मित्त-नाइ[नियग-सयण-संबंधि] परियणेणं सद्धिं रोयमाणा कंदमाणा सोयमाणा तिप्पमाणा विलयमाणा बहू लोइयाई मयकिचाई करेति करेत्ता कालेणं विगयसोया जाया तए णं जिणपातियं अण्णया कयाई सुहासणवरगयं अम्पापियरी एवं बवासी कहण्णं पुत्ता जिणरक्खिए कालगए तए णं से जिणपालिए अम्मापिऊणं लवणसमुद्दोत्तारं च कालियवाच संमुच्छणं च पीववहण-विवत्तिं च फलहखंड आसायणं च रयणदीवुत्तारं च रयणदीव देवया - गिम्हणं च भोगविभूई च रयणदीवदेवया - आधयणं च सूलाइयपुरिसदरिसणं च सेलगजक्खा आरुहणं च रयणदीवदेवया उवसग्गं च जिणरक्खियवादत्तिं च लवणसमुद्दउतरणं च चंपागमणं च सेलगजक्खआपुच्छणं च जहाभूयमवितहमसंदिद्धं परिकहेइ तए णं से जिणपालिए अप्पसोगे जाए जाव विपुलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ | ९४ 87 (१४०) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे जिणपालिए धम्मं सोचा पव्वइए एगारसंगवी मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता सद्धिं भत्ताई अणसणाए छेएत्ता For Private And Personal Use Only


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