Book Title: Agam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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सुयक्खधी-१, अयण-२
अंतिए एयम सोच्चा निसम्म इमेवारूवे अज्झथिए [चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे] समुप्पजित्था एवं खलु थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा इहमागया इहसंपत्ता तं गच्छामि णं घेरे भगवंते वंदामि नम॑सामि एवं संपेहेइ संपेहेत्ता पहाए [कयबलिकम्मे कय- कोउय-मंगल-पायच्छित्ते] सुद्धप्पावेसाई मंगलाई बत्थाई पवर परिहिए पाचविहारचारेणं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उबागच्छित्ता चंदइ नमसइ नए णं येरा घगवंतो धरणस्स विचित्तं धम्पमाइक्खति तए णं से धणे सत्यवाहे धम्मं सोचा एवं व्यासी सद्दहामि णं भंते निग्गंधं पावयण [ पत्तियामि णं भंते निग्गंथं पाजणं रोएम णं भंते निग्गंधं पावयणं अदभुद्वेमि णं भंते निग्धं पावयणं एवमेवं मंते तहमेयं भंते अवितहमेवं भंते इच्छियमेयं भंते पडिच्छिमेवं भंते इच्छि-पडिच्छिमेयं भंते से जहेयं तुदमे वयह त्ति कट्टु थेरे भगवंते वंदइ नमसड् वंदित्ता नमसित्ता | जाव पव्वइए जाव बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणत्ता भत्तं पचखाइत्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता सट्टि भत्ताई अणसपाए छेदित्ता कालमासे कालं किया सोहने कप्पे देवत्ताए उववण्णे तत्थ णं अत्येगइयाणं देवाण चत्तारि पलिओचमाई टिई पन्नत्ता तस्स गं धणस्स देवस्स चत्तारि पलि ओवमाई ठिई से णं धणे देवे लाओ दललगाओ आउकृखएणं टिइक्खएणं भवक्खएणं अनंतरं चयं चइता महाविदेते वासे सिज्झिहि जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेहिइ ।४८1-42
(५४) जहा णं जंबू धणेणं सत्यवाहेणं नो धम्मो ति वा [तवो त्ति वा कयपडिकया इ वा लोगजता इ वा नाचए इ वा घाडियए इ वा सहाए इ वा सुहि त्ति वा] विजयास तक्करस्स ताओ विपुलाओ असण-पाणखाइम साइमाओ संविभागे कए नष्णत्थ सरीरसारक्खणट्टाए एवामेव जंबू जेणं अम्हं निग्गंथे वा निग्गंधी वा आवरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिचं पव्वइए समाणे ववगय-व्हाणुमद्दण- पुप्फ-गंध-मल्वालंकार- विभूसे इमस्स ओरालियसरीरस्स नो वण्णहेउं वा नो रूबहेडं वा नो हलहेउं वा नो बिसयहेउं वा तं विपुलं असणं पाणं खाइन साइमं आहारमाहारेर्इ नृष्णत्य नाणदंसणचरित्ताणं वहणट्टयाए से णं इहलोए चेव बहूणं समाणाणं बहूणं समणी बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाणं य अञ्चणिजे [वंदणिजे नमसणजे पूर्याणि सक्कारणिजे सम्भाणणिजे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं । पजुवासणिजे भवइ परलोह विय णं नो बहूण हत्यच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हिययरप्पायणाणि य वसणुष्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पावाहिइ पुणो अणाइयं च णं अणवदगं दीहमद्धं [ चाउरंत संसारकंतारं] बीईवइस्सइ-जहा व से धणे सत्यवाहे, एवं खलु जंबू समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दोच्चस्स नायज्झयणस्स अयमठ्ठे पन्नत्ते- ति बेमि ।४९1-43
• पढमे सूयक्खंधे बीअं अज्झयणं समतं
४१
तइअं अज्झयणं-अंडे
(५५) जइ णं भंते समर्पणं भगवया महावीरेणं दोघस्स अज्झयणस्स नावाधम्मकहाणं अयम पत्ते तच्चस्स णं भंते नाव झयणस्स के अट्टे पन्नते एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्या-वण्णओ तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए सुभूमिभागे नामं उज्जाणे-सव्वउय-पुप्फ-फल-समिद्धे सुरम्मे नंदनवणे इव सुह-सुरभि-सीयलच्छायाए समवद्धे तस्स णं सुभूमि भागस्स उज्जाणस्स उत्तरओ एगदेसम्मि मालुयाकच्छए होत्या-वण्णओ तत्य णं एगा वणमयूरी दो पुट्ठे परियागए पिहुंडी-पंडुरे निव्वणे निरुवहए भिण्णमुट्ठिष्पमाणे
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