Book Title: Agam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुयखंघो-१, अन्नपण-७ सिल-प्वाल-रत्तरवण-संत-सार]-सावएजस्स च भंडागारिणी ठयेइ एवामेव सपणाउसो जो अम्हं निग्गंधो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भविता अमाराओ अणगारियं पव्वइए] पंच य से महव्ययाइं रक्खियाइं भवंति से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाणं य अच्चणिजे जाव चाउरंतं संसारकतारं बीईवइस्सइ-जहा व सा रक्खिया, रोहिणीया वि एवं चेव नवरं तुझे ताओ मम सुबहुयं सगडि-सागई दलाह जा णं अहं तुभं ते पंच सालिअखे पडिनिनाएमि तए णं से धणे सत्यवाहे रोहिणि एवं वधासी-कह णं तुमं पुत्ता ते पंच सालिअक्खए सगडि-सगडेणं निजाइस्ससि तए णं सा रोहिणी घणं सत्यवाहं एवं वयासी-एवं खलु ताओ तुटभे इओ अतीते पंचमे संवछरे इमस्स मित्त-नाइ-पुिरओ पंथ सालिअक्खए गेण्हह गेण्हित्ता ममं सद्दावेह सद्दावेत्ता एवं वयासीतुम पां पुत्ता मम हत्थाओ इमे पंच सालिअखए गेण्हाहि अनुपुयेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि जया णं अहं पुत्ता तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएजा तया णं तुम मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिन्जाएजाति ति कट्ट मम हत्यंसि पंच सालिअक्खए दलयह तं भवियचं एत्य कारणेणं तं सेव खलु मम एए पंच सालिअक्खए सारखपाणीए संगोवेमाणीए संवडअढेमाणीए जाव बहवे कुंभसयाजाया तेणेव कमेण एवं खलु ताओ तुय्ये ते पंच सालिअक्खए सगडिसागडेणं निजाएमि तए णं से धणे सस्थवाहे रोहिणीयाए सुबहुयं रसगड़ि-सागडं दलाति तए णं से रोहिणी सुबहुं सगडि-सागडं पहाय जेणेव सए कुलघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता कोट्ठागारे विहाडेइ विहाडित्ता पल्ले उद्भिदइ उभिदिता सगडि-सागर्ड भरेइ भरेता राबगिहं नगरं पज्झंमझेणं जेणेव सए गिहे जेणेच धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छद तए णं रायगिहे नयरे सिंधाग जाव पहेसु बहुजणो अण्णमण्णं एदमाइक्खइ-धण्णे णं देवाणुप्पिया धणे सत्यवाहे जस्स णं रोहिणीया सुण्हा पंच सालिअखए सगडि-सागडेणं निजाएइ तए णं से धणे सत्यवाहे ते पंच सालिअक्खए सगडि-सागडेणं निजाइए पासइ पासित्ता हट्टतुढे पडिच्छइ पडिच्छित्ता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवागस्स पुरओ रोहिणीयं मुण्हं तस्स कुलधरस्म बहूसु कजेसु य [कारणेसु य कुटुंबेसु य मंतेसु य गुबझेसु य रहस्सेसु य आपुच्छणिज्जं [पडिपुच्छणिज्ज़ पेटिं पमाणं आहारं आलवणं चक्खु मेढीभूवं पमाणभूयं आहारभूयं आलवंणभूर्य चक्खुभूयं सवका वड्ढावियं पमाणभूयं टवेइ एवामेव समणाउसो [जो अम्हं निगंथो वा निपंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए) पंच से महब्बया संवड्ढिया भवंति से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं वहूर्ण साविगाण वहूर्ण सावयाण य अचणिजे जाव चाउरंतं संसारकंतारं वीइवइस्सइ-जहा व सा रोहिणीय एवं खलु जंबू समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाव सिद्धिगइनामधेङ्गं ठाणं संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अवमढे पन्नत्तेत्ति बेमि।६९।-63 पटपे सुयक्खषे सत्तमंअझयणं सप्मतं. जह सेट्ठी तह गुरुणोजह नाइ-जणोतहासभणसंघोजह बया तए भव्वाजह सालिकणा तह वयाई | अट्ठमं अज्झयणं-मल्ली (७६) जइणं भंते सपणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायजअझयणस्स For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182