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समवायो
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समवाय १८ : टिप्पण
___ डॉ. बूलर बंभी, खरोट्ठिया, दामिली, पुवख रसारिया और जवणालिया को भारत की ऐतिहासिक लिपियां स्वीकार करते हैं। इस संदर्भ में वे जैन सूची को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका कथन है,..."जैनों की सूची में जिन लिपियों की गणना है, उनमें कुछ तो निश्चित ही प्राचीन हैं और उनका पर्याप्त ऐतिहासिक मूल्य है।'
ब्राह्मी की विभिन्न लिपियों के लिए देखें--प्रेमसागर जैन 'ब्राह्मी : विश्व की मूल लिपि ।' ५. एक बार (सइ) :
एक बार का अर्थ है-पोष में मकर संक्रान्ति की रात और आषाढ़ में कर्क संक्रान्ति का दिन ।
अक्षरपृष्ठिका, भोगवतिका, वनयिकी, निन्हविका-इन लिपियों के विषय में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अंकलिपि-यह मार्यभट्ट द्वारा उल्लिखित अंकलिपि है। उसके अनुसार सारे अक्षरों के लिए अंक निश्चित होते हैं, जैसे-क-१, ख=२. ग%-२, म-२५ मादि-प्रादि । अथवा इसका अर्थ यह भी है कि वह लिपि या वह शब्द जिसके द्वारा अंक जाने जाते हैं, जैसे-ख, गगन= ; शशि, भू-१; नेत्र, कर= २ प्रादि-पादि। गणित लिपि-इसका अर्थ है गणित पोर गणना में काम पाने वाले अंक विशेष । गंधर्वलिपि, मादर्शलिपि, माहेश्वरीलिपि-इनके विषय में कुछ भी निश्चयात्मकरूप से नहीं कहा जा सकता। ये केवल कास्पनिक या विचिन्न प्रकार की लिपियां हैं। दामिली-द्राविड़ी और दामिली-ये दोनों लिपियां तमिल लिपि की वाचक हैं। यह लिपि भारत में बहुत प्राचीन-काल से व्यवहृत होती रही है। पोलिंद्री-यह भी कोई काल्पनिक लिपि हो है। अशोक के शिलालेखों में पुलिंद' नामक एक जंगली जाति का उल्लेख मिलता है । लगता है यह जाति किसी एक लिपि से परिचित रही हो और उस लिपि को इसी के नाम से व्यवहृत कर दिया हो। १. भारतीय पुरालिपिशास्त्र, पृष्ठ ५।
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