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पंचासइइमो समवा: पचासिवां समवाय
मूल
संस्कृत छाया
१. आयारस्स णं भगवओ आचारस्य भगवत: सचूलिकाकस्य सचूलियागस्स पंचासीइं पञ्चाशीतिः उद्देशनकालाः प्रज्ञप्ताः ।
उद्देसणकाला पण्णत्ता ।
२. धायइडस्स णं मंदरा पंचासीइं धातकीषण्डस्य मन्दरौ पञ्चाशीति जोयणसहस्सा इं सव्वग्गेणं योजनसहस्राणि सर्वाग्रेण प्रज्ञप्तौ ।
पण्णत्ता ।
३. रुपए णं मंडलियपव्वए पंचासीइं रुचक: माण्डलिकपर्वतः पञ्चाशीति जोयणसहस्सा इं सव्वग्गेणं योजनसहस्राणि सर्वाग्रेण प्रज्ञप्तः । पण्णत्ते । ४. नंदणवण स णं हेट्ठिल्लाओ नन्दनवनस्य अधस्तनात् चरमान्तात् चरिमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स सौगन्धिकस्य काण्डस्य अधस्तनं हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं पंचासीइं चरमान्तं एतत् पञ्चाशीति योजनजोयणसयाई अबाहाए अंतरे शतानि अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम् । पण्णत्ते ।
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हिन्दी अनुवाद
१. चूलिका सहित आचारांग सूत्र के उद्देशकाल' पचासी हैं।
२. धातकीषंड के दोनों मेरु पर्वतों का पूर्ण परिमाण पचासी पचासी हजार योजन' है ।
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३. रुचक मांडलिक पर्वत का पूर्ण परिमाण पचासी हजार योजन' है ।
टिप्पण
१. आचारांग के उद्देशन काल (आयारस्स'' उद्देशनकाला )
आचारांग सूत्र की पांच चूलिकाएं हैं। पांचवीं चूलिका का नाम 'निशीथ है । उसे स्वतन्त्ररूप प्राप्त है, इसलिए वह यहां गृहीत नहीं है । आचार और आचारचूला के उद्देशन- काल इस प्रकार हैं
आचार
४. नन्दनवन के नीचे के चरमान्त से सौगन्धिक काण्ड के नीचे के चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर पचासी सौ योजन का है ।
समवाय ५१/१ में ‘आचार' के नौ अध्ययनों के ५१ उद्देशन- काल बतलाए हैं। देखें ५१ / १ का टिप्पण |
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