Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 391
________________ समवानो ३५८ प्रकीर्णक समवाय : सू० १७५-१७७ गोयमा! छ लेसाओ पण्णत्ताओ, गौतम ! षट लेश्याः प्रज्ञप्ताः, तद्यथातं जहा-किण्हलेसा नीललेसा कृष्णलेश्या नीललेश्या कापोतलेश्या काउलेसा तेउलेसा पम्हलेसा तेजःलेश्या पद्मलेश्या शुक्ललेश्या। एवं सुक्कलेसा। एवं लेसापयं भाणि- लेश्यापदं भणितव्यम । यव्वं । गौतम ! लेश्याएं छह हैं, जैसेकृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तैजसले श्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या। यहां लेश्या पद (प्रज्ञापना पद १७/२-६) वक्तव्य है। आहार-पद आहार-पदम् संग्रहणी गाथा आहार-पदं संगहणी गाहा १. अणंतरा य आहारे, आहाराभोगणाऽवि य। पोग्गला नेव जाणंति, अज्झवसाणा य सम्मत्ते॥ १. अनन्तराश्च आहारे आहाराभोगतापि च । पुदगलान्नैव जानन्ति अध्यवसानानि च सम्यक्त्वम् ।। अनन्तर आहार, आभोग आहार, अनाभोग आहार, पुद्गलों को नहीं जानना, अध्यबसान और सम्यक्त्वये आहार के द्वार हैं। १७५. नेरडया णं भंते ! अणंतराहारा नैरयिकाः भदन्त ! अनन्तराहाराः १७५. भंते ! क्या नैरयिक अनन्तर आहार तओ निव्वत्तणया तओ परियाइ- ततः निर्वर्तनं ततः पर्यादानं ततः (उपपात क्षेत्र-प्राप्ति के उसी क्षण आहार) करते हैं ? तदन्तर निर्वर्तन यणया तओ परिणामणया तओ परिणामनं ततः परिचारणं ततः पश्चाद् (शरीर-रचना), पर्यादान (अंगपरियारणया तओ पच्छा- विकरणम् ? प्रत्यंगों से ग्रहण), परिणमन, परिचाविकुव्वणया ? रण (शब्द आदि विषयों का उपभोग) और विक्रिया (नानारूपकरण) करते हंता गोयमा! नेरइया णं हन्त गौतम ! नैरयिका अनन्तराहाराः अणंतराहारा तओ निव्वत्तणया ततः निर्वर्तनं ततः पर्यादान ततः ततो परियाइयणया तओ परि- परिणामनं ततः परिचारणं ततः पश्चाद् णामणया तओ परियारणया तओ विकरणम् । एवं आहारपदं पच्छा विकुव्वणया। एवं आहार- भणितव्यम् । पदं भाणियब्वं । गौतम ! हां, नैरयिक अनन्तर आहार, तदनन्तर निर्वर्तन, पर्यादान, परिणमन, परिचारण और विक्रिया करते हैं। यहां आहार पद६ वक्तव्य है। आउगबंध-पदं आयुष्कबन्ध-पदम् आयुष्यबंध-पद १७.कविहे णं भंते ! आउगबंध कतिविध: भदन्त ! आयुष्कबन्धः १७६. भंते ! आयुष्य-बंध कितने प्रकार का पण्णते? प्रज्ञप्तः ? गोयमा ! छविहे आउगबंधे गौतम ! षड्विधः आयुष्कबन्धः प्रज्ञप्तः, गौतम ! आयुष्य-बंध छह प्रकार का पण्णत्ते, तं जहा-जाइनाम- तद्यथा-जातिनामनिधत्तायुष्क: गति- है, जैसे-१. जातिनामनिषिवत आयु निधत्ताउके गतिनामनिधत्ताउके नामनिधत्तायुष्क: स्थितिनामनिधत्ता- २. गतिनामनिषिक्त आयु ३. स्थितिठिइनामनिधत्ताउके पएसनाम- युष्क: प्रदेशनामनिधत्तायुष्कः अनुभाग- नामनिषिक्त आयु ४. प्रदेशनाम निषिक्त निधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ता- नामनिधत्तायुष्क: अवगाहनानामनिधत्ता- आयु ५. अनुभागनामनिषिक्त आयु उके ओगाहणानामनिधत्ताउके। युष्कः। ६ अवगाहनानामनिषिक्त आयु । १७७. नेरडयाणं भंते ! कइविहे आउग- नैरयिकाणां भदन्त ! बंधे पण्णते? आयुष्कबन्धः प्रज्ञप्त: ? कतिविध: १७७. भंते ! नैरयिकों के कितने प्रकार का आयुष्य-बंध होता है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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