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समवाश्री
कंत-विक संत-चित्त- वरमालरइय वच्छा अट्ठसय विभत्त-लक्खणपत्थ- सुंदर - विरइयंगमंगा मत्त गयवरद-ललिय विक्कम विल सियगई सारय- नवथणियमधुरगंभीर कोंच-निग्घोस दुदुभिसरा कत्तिगनीलपीय कोसेयवाससा पवरदित्ततेया नरसोहा नरवई नरिंदा नरवसभा मरुयवसभकप्पा अभ िराय-य-लच्छीए दिप्पमाणा नीलग-पीतग-वसणा दुवे ga रामकेसवा भायरो होत्था, तं जहा
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संग्रहणी गाहा
१. तिविट्ठू यदुविट्ठू य, यंभू पुरिसुत्तमे । पुरिससोहे तह पुरिसपुंडरीए,
दत्ते
नारायणे कण्हे ॥
२. अयले
सुप्पभे
आणंदे
रामे
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विजए
भद्दे,
य
सुदंसणे । णंदणे पउमे, यावि अपच्छिम ||
२४२. एतेसि णं णवहं बलदेव वासु देवा goवभविया नव नव नामधेज्जा होत्या, तं जहा
३७३
मत्तगजवरेन्द्र- ललित - विक्रम-विलसितगतयः शारद-नवस्तनितमधुरगम्भीरकौञ्चनिर्घोष - दुन्दुभिस्वराः कटीसूत्रकनील-पीत- कौशेयवाससः प्रवरदीप्ततेजस: नरसिंहाः नरपतयः नरेन्द्राः नरवृषभाः मरुकवृषभकल्पाः अभ्यधिकं राज-तेजो-लक्ष्म्या दीप्यमानाः नीलकपीतक - वसनाः द्वौ द्वौ रामकेशव भ्रातरौ बभूवतुः, तद्यथा
संग्रहणा गाथा
१. पृष्ठच
स्वयम्भूः पुरुषसिंहस्तथा
दत्तः
२. अचलो
द्विपृष्ठश्च पुरुषोत्तमः ।
पुरुषपुण्डरीकः,
कृष्णः ।।
नारायणः
सुप्रभश्च
आनन्द: रामश्चापि
विजयो
नन्दनः
भद्रः,
सुदर्शनः ।
पद्मो, अपश्चिमः ||
एतेषां नवानां पूर्वभविकानि नव नव नामधेयानि बभूवुः, तद्यथा—
प्रकीर्णक समवाय: सू० २४२
के अस्त्र) को धारण करने वाले, प्रवरउज्ज्वल शुक्लांत और निर्मल कौस्तुभ मणि को मुकुट में धारण करने वाले, कुंडलों से उद्योतित मुख वाले तथा कमल की भांति विकसित नयन वाले थे। उनके गले में पहना हुआ एकावली हार वक्ष तक लटक रहा था। उनके वक्ष पर श्रीवत्स का चिन्ह था। वे यशस्वी थे। उनके वक्षस्थल पर सब ऋतुओं के सुरभि-कुसुमों से सुरचित, प्रलम्ब शोभायमान, कमनीय, विकस्वर, विचित्र वर्ण वाली उत्तम माला थी । उनके अंगोपाङ्ग पृथक्-पृथक् एक सौ आठ लक्षणों से प्रशस्त और सुन्दर थे । उनकी गति मत्त गजवरेन्द्र के ललित विक्रम - (संचरण) विलास जैसी थी । उनका स्वर शरद ऋतु के नवगर्जारव, क्रौंचपक्षी के निर्घोष तथा दुंदुभिनाद जैसा मधुर-गंभीर था। वे कटिसूत्र तथा नील और पीत कौशेय वस्त्रों से प्रवर- दीप्त तेज वाले, नरसिंह, नरपति, नरेन्द्र, नरवृषभ, मरुदेश के वृषभ तुल्य", अभ्यधिक राज्यतेज की लक्ष्मी से देदीप्यमान, नील और पीत वस्त्र वाले दो-दो राम और केशव भाई थे, जैसे
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त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुंडरीक, दत्त, नारायण और कृष्ण – ये नौ वासुदेव थे ।
अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द, नंदन, पद्म और राम-ये नौ बलदेव थे ।
बलदेववासुदेवानां २४२. इन नौ बलदेवों और नौ वासुदेवों के
पूर्वभव के नौ-नौ नाम थे, जैसे
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