Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 429
________________ समवायो प्रकीर्णक समवाय : टिप्पण ६९-७५ ६६. सूत्र २३१: देखें--हरिवंशपुराण ६०/१८२-२०५। ७०. सूत्र २३३ : प्रवचनसारोद्धार (३०७-३०६) में इनके नाम इस प्रकार है-- १. ब्राह्मी २ फल्गु ३. श्यामा ४. अजिता ५ काश्यपि ६. रति ७. सोमा ८. सुमना ६. वारुणी १०. सुयशा ११. धारिणी १२. धरणी १३. धरा १४. पद्मा १५. शिवा १६. शुभा १७. दामिनी १८. रक्षी १६. बंधुमति २०. पुष्पवती २१. अनिला २२. यक्षदत्ता २३. पुष्पचूला २४. चन्दना । ७१. सूत्र २३४ : अनेक हस्तलिखित आदर्शों में 'अश्वसेन' पाठ उपलब्ध नहीं है। वहां 'विश्वसेन' पाठ है। विश्वसेन पांचवें चक्रवर्ती के पिता का नाम था। किन्तु इन आदर्शों के आधार पर यदि हम 'अश्वसेन' पाठ स्वीकार नहीं करते हैं तो 'विश्वसेन' नाम चौथे चक्रवर्ती के पिता का ठहरता है । यह गलत है। आवश्यक नियुक्ति में 'अश्वसेन' पाठ स्वीकृत है । वह उचित है।' ७२. सूत्र २३६: भगवान् ऋषभ के समय में भरत, अजित के समय में सगर, धर्मनाथ और शांतिनाथ के अन्तराल काल में मघवा और सनत्कुमार, शांति-कन्थु और अर-ये तीनों चक्रवर्ती और तीर्थङ्कर दोनों थे; अर और मल्ली के अन्तराल काल में सुभूम, मुनिसुव्रत के समय में पद्मनाभ, नमि के समय में हरिषेण, नमि और नेमि के अन्तराल काल में जय तथा अरिष्ट और पार्श्व के अन्तराल काल में ब्रह्म-ये चक्रवर्ती हुए।' ७३. सूत्र २३८ : प्रस्तुत गाथा स्थानांग ६/१६ से ली गई है। समवायांग की कुछ हस्तलिखित प्रतियों में सोम के पश्चात् रुद्र का उल्लेख मिलता है। आवश्यक नियुक्ति में भी यह गाथा प्राप्त है । उसमें एक नाम का भेद है । वहां 'महासिंह' के स्थान पर 'महाशिव' है। ७४. मध्यम (मज्झिम) सूत्र २४१ : तीर्थङ्कर और चक्रवर्ती की तुलना में बलदेव-वासुदेव का बल, ऐश्वर्य आदि कम होता है और प्रतिवासुदेव की तुलना में उनका बल, ऐश्वर्य आदि अधिक होता है, इस प्रकार दो कोटियों के मध्यवर्ती होने के कारण उन्हें मध्यम पुरुष कहा गया ७५. प्रधान (पहाण) सूत्र २४१ : अपने समय के मनुष्यों की अपेक्षा बलदेव-वासुदेव का शौर्य आदि अधिक होता है, इसलिए वे प्रधान-पुरुष कहलाते 1. (क) हस्तलिखित प्रादर्शों में गाथा दय : उसमे सुमितविजए, समुद्दविजए य विस्ससेणे य । सूरिए सुदंसणे पउमुत्तर करावीरिए चेव ॥१॥ महाहरी य विजए य, पउमे राया तहेव य । बम्हे बारसमे वृत्त, पिउनामा चक्कवट्टीणं ॥२॥ (ख) मावश्यकनियुक्ति, गाथा ३९६, ४००: २.मावश्पनियुक्ति, गाथा ४१७-४१६ । ३. समवायांग हस्तलिखित प्रति । ४.मावश्यकनियुक्ति, गाथा ११ । ८...समवायांगवृत्ति, पERI Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470