Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 405
________________ समवायो ३७२ प्रकोणक समवाय : सू० २४१ १. भद्दा तह सुप्पभा य विजया य जयंती णवमिया बलदेवाण सुभद्दा य, सुदंसणा। वैजयंती, अपराइया॥ रोहिणी, मायरो॥ १. भद्रा तथा सुप्रभा च विजया च जयन्ती नवमिका बलदेवानां सुभद्रा च, सूदर्शना। वैजयन्ती, अपराजिता ॥ १. भद्रा २. सुभद्रा ३. सुप्रभा ४. सुदर्शना ५. विजया ६. वैजयन्ती ७. जयन्ती ८. अपराजिता ६. रोहिणी। रोहिणी, मातरः ।। २४१. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे जम्बूद्वीपे द्वीपे भरते वर्षे अस्यां २४१. जम्बूद्वीप द्वीप के भरत क्षेत्र में इस इमाए ओसप्पिणीए नव दसार- अवसपिण्यां नव दशारमण्डलानि बभूवुः, अवसर्पिणी में नौ दशारमंडल (वासुदेव मंडला होत्था, तं जहा- तद्यथा-उत्तमपुरुषाः मध्यमपुरुषाः और बलदेव का समुदाय) हुए थे, उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा प्रधानपुरुषाः ओजस्विन: तेजस्विनः जैसे-उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, पाणपरिसा ओयंसी तेयंसी वर्चस्विन: यशस्विनः छायावन्तः कान्ता: प्रधान' पुरुष, ओजस्वी, तेजस्वी, वच्चंसी जसंसी छायंसी कंता सोमाः सुभगाः प्रियदर्शनाः सुरूपाः । वर्चस्वी, यशस्वी, शोभायुक्त, कान्त, सोमा सुभगा पियदसणा सुरूवा सूखशीला: सुखाभिगमाः सोम, सुभग, प्रियदर्शन, सुरूप, सुखसुहसीला सुहाभिगमा सव्वजण- सर्वजननयनकान्ताः ओघबला: शील, सुखाभिगम (सर्वजनगम्य), सभी णयण-कंता ओहबला अतिबला अतिबला: महाबलाः अनिहताः जनों के चक्षुष्प्रिय, ओघ (अव्यवच्छिन्न) महाबला अणिहता अपराइया अपराजिता: शत्रुमर्दना: रिपुसहस्रमान- बल वाले, अति बल वाले, महाबल सत्तुमद्दणा रिपुसहस्स-माण-महणा मथनाः सानुक्रोशा: अमत्सराः अचपलाः वाले, अनिहत (निरुपक्रम आयुष्य साणुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचण्डा: मित-मञ्जुल-प्रलाप-हसिताः वाले), अपराजित, शत्रु का मर्दन करने अचंडा मिय-मंजुल-पलाव-हसिया गम्भीर - मधुर - प्रतिपूर्ण- सत्यवचनाः वाले, हजारों शत्रुओं के मान को मथने गंभीर-मधुर-पडिपुण्ण-सच्चवयणा अभ्युपगत-वत्सलाः शरण्याः लक्षण- वाले, दयालु, अमत्सर (गुणग्राही), अब्भुवगय-वच्छला सरणा व्यञ्जन-गुणोपेताः मानोन्मान-प्रमाण- अचपल, अचंड (मृदु), मित-मंजुल लक्खणवंजण-गुणोववेया माणु- प्रतिपूर्ण - सुजात - सर्वाङ्गसुन्दराङ्गाः बोलने वाले, शरणागत के लिए वत्सल, म्माण - पमाणपडिपुण्ण - सुजात- शशिसौम्याकार - कान्त - प्रिय-दर्शनाः शरण्य, लक्षण-व्यञ्जन और गुणों से सव्वंग-सुंदरंगा ससिसोमागार-कंत- अमर्षणाः प्रकाण्डदण्डप्रकार उपेत, मान-उन्मान और प्रमाण से पिय-दसणा अमसणा पयंडदंडप्प- गम्भीरदर्शनीयाः तालध्वजोद्विद्ध-गरुड प्रतिपूर्ण सुजात सर्वाङ्ग सुन्दर शरीर यार-गंभीर-वरिसणिज्जा तालद्ध- केतवः महाधनविकर्षकाः महासत्त्व वाले, चन्द्रमा की भांति सौम्याकार, ओन्विद्ध-गरुल-केऊ महाधणु- सागरा: दुर्द्धराः धनुर्धराः धीरपुरुषाः कान्त और प्रियदर्शन वाले, कर्मठ, विकडगा महासत्तसागरा दुद्धरा युद्ध-कीर्तिपुरुषाः विपुल-कुलसमुद्भवाः प्रकांड दंडनीति वाले, गंभीर भाव में धणुद्धरा धीरपुरिसा जुद्ध-कित्ति- महारत्न-विघटकाः अर्द्धभरतस्वामिनः दर्शनीय, तालध्वज वाले (बलदेव) पुरिसा विउलकुल-समुन्भवा सोमाः राजकुलवंशतिलकाः अजिताः तथा उच्छितगरुडध्वज वाले (वासुदेव), महारयण-विहाडगा अद्धभरह- अजितरथाः हल-मुशल-कणक-पाणयः बड़े-बड़े धनुष्यों को चढ़ाने वाले, महान् सामी सोमा रायकुल-वंस-तिलया शङ्ख - चक्र - गदा - शक्ति- नन्दकधराः । सत्व के सागर, दुर्धर, धनुर्धर, धीर अजिया अजियरहा हल-मुसल- प्रवरोज्ज्वल शुक्लान्त - विमल-कौस्तुभ पुरुष और युद्ध में यश प्राप्त करने कणग-पाणी संख-चक्क-गय-सत्ति- किरीटधारिणः कुण्डल-उद्योतिताननाः ।। वाले, विपुलकुल में उत्पन्न, महारत्न नंदगधरा पवरुज्जल-सुक्कंत- पुण्डरीकनयनाः एकावली-कण्ठ-लगित- (वन) को अंगुष्ठ-तर्जनी से चूर्ण विमल-गोथुभ-तिरीडधारी कुंडल- वक्षस: श्रीवत्स-सुलाञ्छना: वरयशसः करने बाले, अधं भरत के स्वामी, उज्जोइयाणणा पुंडरीय-णयणा सर्वर्तुक-सुरभि-कुसुम - सुरचित-प्रलम्ब- सोम, राजकुलवंश के तिलक, अजित, एकावलि-कंठलइयवच्छा सिरि- शोभमान-कान्त-विकसच्चित्र-वरमाला- अजेय रथ वाले, हल-मूशल (बलदेव बच्छ-सुलंछणा वरजसा सव्वोउय- रचितवक्षसः अष्टशत-विभक्त-लक्षण- के अस्त्र) तथा कणक (बाण)-शंखसुरभि-कुसुम-सुरइत-पलंबसोभंत - प्रशस्त - सुन्दर - विरचिताङ्गाङ्गाः चक्र-गदा, शक्ति और नंदक (वासुदेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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