Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 394
________________ समवाश्रो १८. एवं जाव थणिय कुमारत्ति । १६१. एवं जाव संमुच्छि मपचदिय तिरिक्खजोणियत्ति | १६०. पुढवीकाइया णं भंते! किसंघ- पृथ्वीकायिका : भदन्त ! किंसंहनना: १६०. भंते ! यणी पण्णत्ता ? प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! सेवार्त्तसंहननाः प्रज्ञप्ताः । गोमा ! छेवट्टसंघयणी पण्णत्ता । १२. गन्भवक्कतिया छविहसंघयणी । १३. समुच्छिममणुस्सा णं छेवट्टसंघ सम्मूच्छिममनुष्याः सेवार्त्तसंहननाः । यणी । १६५. जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया य । १९६. कइविहे णं भंते ! पण्णत्ते ? ३६१ एवं यावत् स्तनितकुमारा इति । गोयमा ! छवि ठाणे पण्णत्ते, तं जहा - समचरं जग्गोहपरि मंडले साती खुज्जे वामणे हंडे । १६८. असुरकुमारा पण्णत्ता ? एवं यावत् सम्मूच्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका इति । १६. पुढवी मसूरयसंठाणा पण्णत्ता । Jain Education International गर्भावक्रान्तिकाः षड्विधसंहननाः । १४. गन्भवक्कंतियमणुस्सा छव्विह- गर्भावक्रान्तिकमनुष्याः षड्विधसंहननाः १६४. गर्भावक्रान्तिक मनुष्यों के हों संहनन होते हैं । संघयणी पण्णत्ता । प्रज्ञप्ताः । संठाणे कतिविधं भदन्त ! संस्थानं प्रज्ञप्तम् ? यथा असुरकुमाराः तथा वानमन्तराः ज्योतिष्काः वैमानिकाश्च । १६७. रइया णं भंते ! पण्णत्ता ? किसंठाणा नैरयिकाः भदन्त ! प्रज्ञप्ता: ? गोमा ! हुंडठाणा पण्णत्ता । गौतम ! हुण्डसंस्थाना: प्रज्ञप्ताः । किसंठाणसंठिया गोयमा ! समचउरंसठाणसंठिया पण्णत्ता जाव थणियत्ति । गौतम! षड्विधं संस्थानं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा - समचतुरस्रं न्यग्रोधपरिमण्डलं सादि कुब्जं वामनं हुण्डम् । प्रकोणक समवाय: सू० १८६-१६६ १८. स्तनितकुमार तक के सभी भवनपति देव असंहननी होते हैं । असुरकुमाराः प्रज्ञप्ता: ? गौतम! समचतुरस्रसंस्थानसंस्थिताः प्रज्ञप्ताः । यावत् स्तनिता इति । पृथ्वीकायिक जीव किस पृथिवी मसूरकसंस्थाना प्रज्ञप्ता । संहनन वाले होते हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के सेवार्त संहनन होता है । For Private & Personal Use Only १९१. इसी प्रकार ( यावत् ) सम्मूच्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक जीवों के केवल सेवा संहनन होता है । १९२. गर्भावक्रान्तिक तियंञ्चों के छहों संहनन होते हैं । १९३. सम्मूच्छिम मनुष्यों के सेवार्त्त संहनन होता है। किंसंस्थाना : १९७. भंते! नैरयिक किस संस्थान वाले होते हैं ? गौतम ! वे हुण्ड संस्थान वाले होते हैं । १९५. वानमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की वक्तव्यता असुरकुमार देवों के समान है । १९६. भंते! संस्थान कितने प्रकार के हैं ? किंसंस्थान -संस्थिताः १६८. भंते! असुरकुमार किस संस्थान वाले होते हैं ? गौतम ! वे समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं । स्तनितकुमार तक के सभी भवनपति देव समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं । गौतम ! संस्थान छह प्रकार के हैं, जैसे - १. समचतुरस्र २. न्यग्रोधपरिमण्डल ३. सादि ४. कुब्ज ५. वामन ६. हुण्ड । १६. पृथ्वी के जीव मसूर संस्थान वाले होते हैं । www.jainelibrary.org

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