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प्रकोणक समवाय : सू० १७२-१७४
अवधि-पद
अवधि-पदम् संग्रहणी गाथा
समवानो ओहि-पदं संगहणी गाहा
१. भेदे विसय संठाणे, अन्भंतर बाहिरे य देसोही। ओहिस्स वडि-हाणी, पडिवाती चेव अपडिवाती॥
१. भेदो विषयः संस्थान,
आभ्यन्तरबाह्यौ च देशावधिः । अवधेः वृद्धि-हानी, प्रतिपातिश्चैव अप्रतिपातिः ।।
भेद, विषय, संस्थान, आभ्यन्तर, बाह्य, देश, सर्व, वृद्धि, हानि, प्रतिपाती और अप्रतिपाती-ये अवधिज्ञान के द्वार
१७२. कइविहे गं भंते ! ओही पण्णते? कतिविधः भदन्त ! अवधिः प्रज्ञप्तः ? १७२. भंते ! अवधिज्ञान कितने प्रकार का
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते- गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्त:भवपच्चइए य खओवसमिए य। भवप्रत्ययिकश्च क्षायोपशमिकश्च । एवं एवं सव्वं ओहिपदं भाणियध्वं । सर्व अवधिपदं भणितव्यम ।
गौतम ! वह दो प्रकार का हैभवप्रत्ययिक और क्षायोपशमिक । यहां सम्पूर्ण अवधि पद (प्रज्ञापना पद ३३) वक्तव्य है। वेदना-पद
वेदना-पदम् संग्रहणी गाथा
वेयणा-पदं संगहणी गाहा
१. सीता य दव्व सारीर, साय तह वेयणा भवे दुक्खा। अब्भुवगमवक्कमिया, णिदाए चेव अणिदाए॥
१. शीता च द्रव्यशारीरी,
साता तथा वेदना भवेद्दुःखा। आभ्युपगमिक्यौपक्रमिक्यौ, निदया चैव अनिदया ।
शीत वेदना, उष्ण वेदना, शीतोष्ण वेदना, द्रव्य वेदना, क्षेत्र वेदना, काल वेदना, भाव वेदना, शारीरिकी वेदना, मानसिकी वेदना, शारीर-मानसिकी वेदना, सात वेदना, असात वेदना, सात-असात वेदना, सुख वेदना, दुःख वेदना और सुख-दुःख वेदना, आभ्युपगमिकी वेदना, औपक्रमिकी वेदना, निदा वेदना और अनिदा वेदना-ये वेदना के द्वार हैं।
१७३. नेरडया णं भंते! कि सीतवेयणं नैरयिकाः भदन्त ! कि शीतवेदनां १७३. भंते ! रयिक क्या शीत वेदना का वेदंति? उसिणवेयणं वेदंति? वेदयन्ति. उष्णवेदनां वेदयन्ति ?
वेदन करते हैं अथवा उष्ण वेदना का सीतोसिणवेयणं वेदंति? शीतोष्णवेदनां वेदयन्ति ?
वेदन करते हैं अथवा शीतोष्ण वेदना का वेदन करते हैं ?
गोयमा! नेरइया सोतं वि वेदणं गौतम ! नैरयिका: शीतामपि वेदनां वेदेति, उसिणं पि वेदणं वेदेति, वेदयन्ति, उष्णमपि वेदनां वेदयन्ति, नो णो सीतोसिणं वेदणं वेति । एवं शीतोष्णां वेदनां वेदयन्ति। एवं चैव चेव वेयणापदं भाणियन्वं । वेदनापदं भणितव्यम।
गौतम ! नैरयिक शीत वेदना का भी वेदन करते हैं, उप्ण वेदना का भी वेदन करते हैं किन्तु शीतोष्ण वेदना का वेदन नहीं करते। यहां सम्पूर्ण वेदना पद (प्रज्ञापना पद ३५) वक्तव्य है।
लेसा-पदं
लेश्या-पदम्
लेश्या-पद
१७४. कइ णं भंते ! लेसाओ कति भदन्त ! लेश्याःप्रज्ञप्ताः ?
पण्णत्ताओ?
१७४. भंते ! लेश्याएं कितनी हैं ?
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