Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 342
________________ समवायो ३०९ प्रकीर्णक समवाय : सू० ४६-५३ ४६. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः बहुसमरणिज्जाओ भूमिभागाओ बहुसमरणीयात् भूमिभागात् अष्टभिः अहि जोयणसहि सूरिए चारं योजनशतैः सूर्यः चारं चरति । चरति । ४६. इस रलप्रभा पृथ्वी के बहुसमरमणीय भूमिभाग से आठ सौ योजन पर सूर्य गति करता है। ४७. अरहओ णं अरिट्रनेमिस्स अटू अर्हतः अरिष्टनेमेः अष्टशतानि वादिनां ४७. अर्हत् अरिष्टनेमि के उत्कृष्ट वादी सयाई वार्डणं सदेवमणयासरम्मि सदेवमनुजासुरे लोके वादे संपदा आठ सौ मुनियों की थी। लोगम्मि वाए अपराजियाणं अपराजिताना उत्कृष्टा वादिसम्पद मनुष्य और असुरलोक में होने वाले उक्कोसिया वाइसंपया होत्था। आसीत् । किसी भी वाद में अपराजित थे। ४८ आणय - पाणय - आरणच्चएस आनत-प्राणत-आरणाच्युतेष कल्पेषु कप्पेस विमाणा नव-नव विमानानि नव-नव योजनशतानि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि । पण्णत्ता। ४८. आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्पों में विमान नौ सौ नौ सौ योजन ऊंचे हैं। ४६. निसहकूडस्स णं उवरिल्लाओ निषधकूटस्य उपरितनात् शिखरतलात् ४६. निषधकूट के उपरितन चरमान्त से सिहरतलाओ णिसढस्स निषधस्य वर्षधरपर्वतस्य समं धरणीतलं, निषध वर्षधर पर्वत के सम-भूतल का वासहरपव्वयस्स समे धरणितले, एतत् नव योजनशतानि अबाधया व्यवधानात्मक अन्तर नौ सौ योजन एस णं नव जोयणसयाई अन्तरं प्रज्ञप्तम् । का है। अबाहाए अंतरे पण्णते। ५०. एवं नोलवंतकूडस्सवि। एवं नीलवत्कूटस्यापि । ५०. नीलवत्कूट के उपरितन चरमान्त से नीलवत् वर्षधर पर्वत के सम-भूतल का व्यवधानात्मक अन्तर नौ सौ योजन का है। ५१. विमलवाहणे णं कुलगरे णं नव विमलवाहनः कुलकरः नव धनुःशतानि ५१. कुलकर विमलवाहन नो सौ धनुष्य धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं ऊर्ध्वमुच्चत्वेन आसीत् । ऊंचे थे। होत्था। ५२. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः ५२ इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसमरमणीय बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ बहुसमरमणीयात् भूमिभागात् नवसु भूमिभाग से नौ सौ योजन पर सबसे नहिं जोयणसहि सव्वुपरिमे योजनशतेषु सर्वोपरितनं तारारूपं चारं ऊपर के तारागण गति करते हैं। तारारूवे चारं चरइ। चरति । ५३. निसढस्स णं वासधरपव्वयस्स निषधस्य वर्षधरपर्वतस्य उपरितनात् ५३. निषध वर्षधर पर्वत के उपरितन उवरिल्लाओ सिहरतलाओ शिखरतलात अस्याः रत्नप्रभायाः शिखरतल से इस रत्नप्रभा पृथ्वी के इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवाए पृथिव्याः प्रथमस्य काण्डस्य बहुमध्य- प्रथम काण्ड के बहुमध्यदेशभाग का पढमस्स कंडस्स बहुमज्झदेसभाए, देशभागः, एतत् नवयोजनशतानि व्यवधानात्मक अन्तर नौ सौ योजन का एस णं नव जोयणसयाई अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम् । अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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