Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 373
________________ समवानो ३४० प्रकीर्णक समवाय : सू० १२९-१३० अणत्तरगई गई य जत्तिया, जत्तिया अनुत्तरगतिश्च यावन्तः, यावन्तः सिद्धा, पातोवगता य जे जहि सिद्धाः, प्रायोपगताश्च ये यत्र यावन्ति जत्तियाई भत्ताइं छेयइत्ता अंतगडा भक्तानि छेदयित्वा अन्तकृताः मणिवरुत्तमा तम-रओघ- मूनिवरोत्तमाः तमो-रज-आघविप्पमुक्का सिद्धिपहमणुत्तरं च विप्रमुक्ताः सिद्धिपथमनुत्तरं च प्राप्ताः। पत्ता । जितने अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए हैं, जितने सिद्ध हुए हैं, जिन्होंने प्रायोपगमन अनशन किया है तथा जितने भक्तों का छेदन कर जो उत्तम मुनिवर अन्तकृत हुए हैं, तम और रज से विप्रमुक्त होकर अनुत्तर सिद्धि-पथ को प्राप्त हुए हैं उनका वर्णन है । एए अण्णे य एवमादी भावा एते अन्ये च एवमादिभावाः । मूलपढभाणुओगे कहिया मूलप्रथमानुयोगे कथिता आख्यायन्ते । आघविज्जति पण्णविज्जति प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते दयन्ते निदर्श्यन्ते परूविज्जति सिज्जति उपदर्श्यन्ते । सोऽसौ मूलप्रथमानयोगः । निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं मूलपढमाणुओगे। तथा इस प्रकार के अन्य भावों का कथन, आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन हुआ है । यह मूलप्रथमानुयोग है। १२६. से कि तं गंडियाणुओगे ? अथ कोऽसौ कण्डिकानुयोगः ? १२६. कण्डिकानुयोग क्या है ? गंडियाणुओगे अगविहे पण्णत्ते, कण्डिकानुयोगः अनेकविधः प्रज्ञप्तः, कण्डिकानुयोग अनेक प्रकार का है, तं जहातद्यथा जैसेकुलगरगंडियाओ, तित्थगर- कुलकरकण्डिकाः, तीर्थकरकण्डिकाः, कुलकरकंडिका, तीर्थकरकंडिका, गंडियाओ, गणधरगंडियाओ, गणधरकण्डिकाः, चक्रवत्तिकण्डिकाः, गणधरकंडिका, चक्रवर्तीकंडिका, दशारचक्कवट्टिगंडियाओ, दसार- दशारकण्डिकाः, बलदेवकण्डिका:, कंडिका, बलदेवकंडिका, वासुदेवकंडिका, गंडियाओ, बलदेवगंडियाओ, वासुदेवकण्डिका:, हरिवंशकण्डिका:, हरिवंशकंडिका, भद्रबाहुकंडिका, वासदेवगंडियाओ, हरिवंस- भद्रबाहकण्डिकाः, तपःकर्मकण्डिकाः, तपःकर्मकंडिका, चित्रांत रकंडिका", गंडियाओ, भद्दबाहगंडियाओ, चित्रान्तरकण्डिका:, उत्सपिणी- उत्सर्पिणीकंडिका, अवसर्पिणीकंडिका, तबोकम्मगंडियाओ, चित्तंतर- कण्डिकाः, अवसर्पिणीकण्डिका:, देव, मनुष्य, तिर्यञ्च और नरक गति गंडियाओ, उस्सप्पिणीगंडियाओ, अमर - नर-तिर्यग - निरयगति-गमन- में गमन तथा विविध परिवर्तन का ओसविणांगडियाओ, अमर-नर- विविध-परिवर्तनानुयोगः, एवमादिका: अनुयोग इत्यादि कंडिकाओं का तिरिय-निरय - गइ-गमण-विविह- कण्डिकाः आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, परियट्टणाणुओगे, एवमाइयाओ प्ररूप्यन्ते दर्श्यन्ते निदयन्ते उपदश्यन्ते। निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। गंडियाओ आधविज्जति सोऽसौ कण्डिकानयोगः । यह कंडिकानुयोग है। पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति। सेत्तं गंडियाणओगे। १३०. से कि तं चूलियाओ? अथ कास्ता: चूलिकाः ? १३०. चूलिका क्या है ? चलियाओ-आइल्लाणं चउण्हं चूलिका:-आदिमानां चतुर्णा पूर्वाणां पुव्वाणं चूलियाओ, सेसाई पुब्वाई चूलिकाः, शेषाणि पूर्वाणि अचूलिकानि। अचूलियाई । सेत्तं चूलियाओ। तदेताः चूलिकाः । प्रथम चार पूर्षों में चूलिकाएं हैं, शेष पूर्वो में चूलिकाएं नहीं हैं । यह चूलिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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