Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 346
________________ समवाश्रो ८१. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी छपुवस सहस्सा रायमज्झा - सत्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । णं दीवस पुरथिमिल्लाओ asयंताओ धायsisचक्कवालस्स पच्चत्थि - मिल्ले चरिमंते, ( एस णं ? ) सत्त जोयणसयसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । ८२. जंबूदीवस्स ८४. अजियस णं अरहओ साइरेगाई नव ओहिनाणिसहस्साइं होत्था । ८३. माहिदे णं कप्पे अट्ट विमाणा - माहेन्द्रे कल्पे अष्ट विमानावासशतवाससय सहस्साइं पण्णत्ताई । सहस्राणि प्रज्ञप्तानि । ८५. पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वासय सहस्सा इं सव्वाउयं पालइत्ता पंचमाए पुढवीए नरएसु नेता उववण्णे । ८६. समणे भगवं महावीरे तित्थगरभवरगहणाओ छट्ठे पोट्टिलभवगहणे एवं वासकोड सामण्णपरियागं पाउणित्ता सहस्सारे कप्पे सम्वट्ठे विमा देवत्ता उववण्णे । ८७. उस सिरिस्स भगवओ चरिमस्स य महावीरवद्धमाणस्स एगा सागरोवमको डाकोडी अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । दुवालसंग - पर्द ३१३ भरतः राजा चातुरन्तचक्रवर्ती षट् पूर्वंशतसहस्राणि राज्यम भूत्वा अगारात् अनगारितां प्रव्रजितः । जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य पौरस्त्यात् वेदिकान्तात् धातकीषण्डचक्रवालस्य पाश्चात्यं चरमान्तं ( एतत् ? ) सप्त योजनशतसहस्राणि अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम् । Jain Education International अजितस्य अर्हतः सातिरेकाणि नव अवधिज्ञानिसहस्राणि आसन् । पुरुषसिंहः वासुदेव: दश वर्षशतसहस्राणि सर्वायुष्कं पालयिष्वा . पञ्चम्यां पृथिव्यां नरकेषु नैरयिकत्वेन उपपन्नः । श्रमणः भगवान् महावीर : तीर्थंकरभवग्रहणात् षष्ठे पोट्टिलभवग्रहणे एकां वर्षकोटि श्रामण्यपर्यायं प्राप्य सहस्रारे कल्पे सर्वार्थ विमाने देवत्वेन उपपन्नः । ऋषभश्रियः भगवतः चरमस्य च महावीरवर्द्धमानस्य एकां सागरोपमकोटिकोटिं अबाघया अन्तरं प्रज्ञप्तम् । द्वादशाङ्गपदम् ८८. दुवाल संगे गणिपिडगे पण्णत्ते, द्वादशाङ्गगणिपिटकं प्रज्ञप्तम्, तद्यथातं जहा - आयारे सूयगडे ठाणे आचारः सूत्रकृतं स्थानं समवायः समवाए विआहपण्णत्ती णाया - व्याख्याप्रज्ञप्ति: ज्ञात-धर्मकथा: धम्मकाओ उवासगदसाओ उपासकदशाः अंतगडदसाओ अणुत्तरोववाइय- अनुत्तरोपपातिकदशाः प्रश्नव्याकरणानि अन्तकृत दशाः ओ पहावगरणाई विवागसुए विपाकश्रुतं दृष्टिवादः । दिट्टिवाए । For Private & Personal Use Only प्रकीर्णक समवाय: सू० ८१-८८ ८१. चातुरन्त चक्रवर्ती राजा भरत छह लाख पूर्वी तक राज्य कर, मुंड होकर, अगार अवस्था से अनगार अवस्था में प्रव्रजित हुए थे । ८२. जम्बूद्वीप द्वीप की पूर्वी वेदिका के चरमान्त से धातकीपंड के चक्रवाल के पश्चिमी चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर सात लाख योजन का है । ८३. माहेन्द्र कल्प में आठ लाख विमान हैं । ८४. अर्हत् अजित के कुछ अधिक नौ हजार " अवधिज्ञानी थे । ८५. वासुदेव पुरुषसिंह" ( पांचवें वासुदेव) दस लाख वर्ष के पूर्ण आयु का पालन कर, पांचवीं पृथ्वी के नरकों में नैरयिक के रूप में उत्पन्न हुए । ८६. श्रमण भगवान् महावीर तीर्थंकर भवग्रहण (जन्म) से पूर्व छठे पोट्टिल भवग्रहण" में एक करोड़ वर्ष तक श्रामण्यपर्याय का पालन कर सहस्रार देवलोक में सर्वार्थं विमान में देवरूप में उत्पन्न हुए । ८७. भगवान् श्री ऋषभ से चरम तीर्थंङ्कर महावीर वर्द्धमान का व्यवधानात्मक अन्तर एक कोडाकोड सागरोपम का है । द्वादशांग-पद ८८. गणिपिटक के बारह अंग हैं, " जैसे १. आचार ८. अन्तकृतदशा २. सूत्रकृत ६. अनुत्तरोपपातिकदशा ३. स्थान ४. समवाय १०. प्रश्नव्याकरण ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ११. विपाकश्रुत ६. ज्ञात-धर्मकथा १२० दृष्टिवाद । ७. उपासकदशा www.jainelibrary.org

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