________________
मूल
१. चंदप्पहस्स णं अरहओ तेणउई गणा ते उई गणहरा होत्था ।
२. संतिस
६३
ते उइमो समवा : तिरानवेवां समवाय
णं अरहओ तेणउई उसव्विसया होत्या ।
३. ते उइमंडलगते
णं सूरिए अतिवट्टमाणे निवट्टमाणे वा समं अहोरत्तं विसमं करे |
Jain Education International
संस्कृत छाया
चन्द्रप्रभस्य अर्हतः त्रिनवतिः गणाः त्रिनवतिः गणधराः आसन् ।
शान्तेः अर्हतः त्रिनवतिः चतुर्दशपूर्विंशतानि आसन् ।
त्रिनवतिमण्डलगत : सूर्य: अतिवर्तमानो निवर्तमानो वा समं अहोरात्रं विषमं करोति ।
टिप्पण
हिन्दी अनुवाद
१. अर्हत् चन्द्रप्रभ के तिरानवे गण और तिरानवे गणधर थे ।
For Private & Personal Use Only
२. अर्हत् शांति के तिरानवे सौ चौदहपूर्वी थे ।
१. सूर्य विषम कर देता है ( सूरिए "विसमं करेs)
२
६१
जब दिन और रात पन्द्रह - पन्द्रह मुहूर्त के होते हैं तब उन्हें 'सम अहोरात्र' कहा जाता है। जब सूर्य सर्व आभ्यंतरमंडल में रहता है तब अठारह मुहूर्त्त का दिन और बारह मुहूर्त की रात्री होती है और जब सूर्य सर्व बाह्य-मंडल में रहता है तब अठारह मुहूर्त्त की रात्री और बारह मुहूर्त्त का दिन होता है। शेष एक सौ तिरासी मंडलों में प्रतिमंडल - भाग की वृद्धि या हानि होती है। जब दिन बढ़ता है तब रात घटती है और जब रात बढ़ती है तब दिन घटता है । इस १ प्रकार जब सूर्य बानवें मंडल में आता है तब तक (६६९२ ) ३ मुहर्त की हानि या वृद्धि होती है । मुहूर्त्त प्रमाण की विवक्षा न कर हम जब अठारह मुहुत्तों में से घटाते हैं तो पन्द्रह मुहूर्त्त और जब बारह मुहूर्तीों में मिलाते हैं तो पन्द्रह मुहूर्त होते हैं । अत: बानवें मंडल के अर्धभाग में दिन-रात की समानता होती है और बाद में विषमता। इसीलिए बानवें मंडल से प्रारम्भ कर जब सूर्य तिरानवें मंडल में आता है तब दिन-रात विषम हो जाते हैं ।
१
६१
६१
१ समवायांगवृत्ति, पक्ष १०
३. तिरानवे मंडल में रहा हुआ सूर्य अतिवर्तन ( सर्व बाह्य-मंडल से सर्वाभ्यंतर-मंडल की ओर जाता हुआ ) तथा निवर्तन करता हुआ ( सर्भाभ्यंतरमंडल से सर्व बाह्य-मंडल की ओर जाता हुआ ) सम अहोरात्र को विषम कर देता है
।
www.jainelibrary.org