________________
टिप्पण
१. हैरण्यवत (हेरण्णवतियाणं )
मूल पाठ में 'एरण्णवय' पद प्राप्त है, किन्तु वास्तविक पद 'हैरण्यवत' है । प्रतीत होता है कि 'हैरण्यवत' के हकार का लोप करने पर 'एरण्णवय' पद बना है ।
२. अस्त (अत्थस्स)
यहां प्रस्तुत सूत्र में 'अत्थ' शब्द है । वृत्तिकार ने इसका संस्कृत रूप 'अस्त' और इसका अर्थ 'मेरु' किया है, क्योंकि सूर्य पर्वत से अन्तरित होकर अस्तंगत होता है, इसलिए उपचार से मेरु पर्वत को भी 'अस्त' कहा गया है।' सोलहवें समवाय में मेरु पर्वत के सोलह नाम आए हैं। उनमें एक नाम है 'अत्थ' । इसके संस्कृत रूप 'अर्थ' और 'अस्त' दोनों होते हैं। देखेंसोलहवें समवाय में मन्दर पर्वत का टिप्पण ।
१. समवायांगवृत्ति, पत्र ६९ :
प्रत्यासत्ति प्रस्तो मे रुतस्तेनान्तरितो रविरस्तं गत इति व्यपदिश्यते ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org