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टिप्पण
१. कर्मविपाक के अध्ययन (कम्मविवागज्झयणा)
वत्तिकार ने विपाकसूत्र को सामने रख कर प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या की है। वर्तमान में लब्ध विपाकसूत्र के बीस अध्ययन हैं। सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययन सम्मिलित करने पर कर्मविपाक के तेंतालीस अध्ययनों की संख्या पूर्ण हो सकती है। वृत्तिकार ने यह संभावना प्रस्तुत की है। उन्होंने इसका कोई आधार प्रस्तुत नहीं किया है। किन्तु द्वादशांगी के निरूपण में सूत्रकृतांग का कर्मविपाक सम्बन्धी विषय उल्लिखित नहीं है।' कर्मविपाक की पहचान 'विपाकसूत्र' के रूप में करने पर उक्त समस्या उत्पन्न हुई है। यदि हम कर्मविपाक को एक स्वतंत्र आगम मान लेते हैं तो वह समस्या स्वयं सुलझ
जाती है। कर्मविपाक, जो आज उपलब्ध नहीं है, के तेंतालीस अध्ययन थे। २. तेंतालीस लाख नरकावास (तेयालीसं निरयावाससयसहस्सा)
पहली पृथ्वी में तीस लाख, चौथी पृथ्वी में दस लाख और पांचवीं पृथ्वी में तीन लाख नरकावास हैं।
१ समवायांग, प्रकीर्ण समवाय ६६ :
वीसं मझयणा। २. समवायांगवृत्ति, पत्र ६४ :
एतानि च एकादशाङ्गद्वितीयाङ्गयो: संभाव्यन्ते। ३. समवायांग, प्रकीर्ण समवाय १०॥
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