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तेवट्ठिमो समवानो : तिरसठवां समवाय
मूल संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद १. उसमे णं अरहा कोसलिए तेसट्टि ऋषभः अर्हन् कौशलिक: त्रिषष्ठि १. अर्हत् कौशलिक ऋषभ तिरसठ लाख पुव्वसयसहस्साई महराय- पूर्वशतसहस्राणि महाराजवासमध्युष्य पूर्वो तक महाराज की अवस्था में वासमझावसित्ता मुंडे भवित्ता मुण्डो भूत्वा अगारात् अनगारितां रह कर मुंड हुए तथा अगार अवस्था अगाराओ अणगारियं पव्वइए। प्रवजितः ।
से अनगार अवस्था में प्रवजित हुए। २. हरिवासरम्मयवासेसु मणुस्सा हरिवर्षरम्यकवर्षयोः मनुष्याः त्रिषष्ठया २. हरिवर्ष और रम्यकवर्ष के मनुष्य
तेवट्रिए राइंदिएहि संपत्तजोव्वणा रात्रिन्दिवैः सम्प्राप्तयौवनाः भवन्ति । तिरसठ दिन-रात में यौवन अवस्था को भवंति।
प्राप्त हो जाते हैं। ३. निसहे णं पव्वए तेटुिं सूरोदया निषधे पर्वते त्रिषष्ठिः सूरोदयाः ३. निषध पर्वत पर तिरसठ सूर्योदय पण्णत्ता। प्रज्ञप्ताः ।
(सूर्य-मंडल) हैं। ४. एवं नीलवंतेवि। एवं नीलवत्यपि ।
४. नीलवान् पर्वत पर तिरसठ सूर्योदय
टिप्पण
१,२. तिरसठ सूर्योदय (तेर्वाद सूरोवया)
जम्बूद्वीप में दो सूर्य हैं। दोनों का मंडल-क्षेत्र ५१०० योजन का है। इसमें से १८० योजन प्रमाण मंडल-क्षेत्र जम्बुद्वीप में और शेष लवण समुद्र में है । प्रत्येक सूर्य के सारे मंडल १८४ हैं। उनमें से ६५-६५ जम्बूद्वीप में और शेष ११६. ११६ लवण समुद्र में हैं। जम्बूद्वीप के ६५-६५ मंडलों में से दो-दो मंडल उसकी जगती पर हैं। शेष ६३ मंडल निषध पर्वत पर और ६३ मंडल नीलवान् पर्वत पर हैं।
निषध पर्वत मेरु के दक्षिण में और पूर्व-पश्चिम में जम्बूद्वीप की जगती तक आयत है और नीलवान् पर्वत मेरु के उत्तर में पूर्व-पश्चिम में जगती तक आयत है।'
१. समवायांगवृत्ति, पत्र ७३ ।
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