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समवायो
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समवाय ६७ : टिप्पण २. सीमा-विष्कंभ (सीमाविक्खंभेणं)
नक्षत्र अट्ठाईस हैं। प्रत्येक नक्षत्र एक अहोरात्र में अमुक-अमुक क्षेत्र का अवगाहन करता है। उस क्षेत्र-अवगाहना में जो नक्षत्र जितने क्षेत्र तक चन्द्रमा के साथ योग करता है, वह उस नक्षत्र का क्षेत्र की दृष्टि से सीमा-विष्कंभ होता है।
अभिजित् नक्षत्र द्वारा एक अहोरात्र में अवगाढ़ क्षेत्र के यदि हम सडसठ भाग करते हैं तो नक्षत्र इक्कीस भाग तक चन्द्र के साथ योग करता है अर्थात् क्षेत्र की दृष्टि से अभिजित् नक्षत्र का सीमा-विष्कंभरी है। इसी प्रकार अन्य नक्षत्रों का क्षेत्र की दृष्टि से तथा काल की दृष्टि से सीमा-विष्कंभ इस प्रकार हैंनक्षत्र
क्षेत्र-सीमा काल-सीमा १. अभिजित
२. शतभिषग्, भरणी, आर्दा, अश्लेषा,
स्वाति, ज्येष्ठा
१५ मुहूर्त
३. उत्तरभद्रपदा, उत्तरफल्गुनी, उत्तराषाढ़ा,
पुनर्वसु, रोहिणी, विशाखा
४५ मुहर्त
ple of al
४. शेष पन्द्रह नक्षत्र
३० मुहूर्त
१. समवायर्यागवृत्ति, पञ्च ५।
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