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७६ एगूणासीइमो समवायो : उन्नासिवां समवाय
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
१. वलयामुहस्स णं पायालस्स वडवामुखस्य पातालस्य अधस्तनात् १. वडवामुख पातालकलश के नीचे के
हेट्रिल्लाओ चरिमंताओ इमोसे चरमान्तात अस्याः रत्नप्रभायाः चरमान्त से इस रत्नप्रभा पृथ्वी के रयणप्पभाए पुढवीए हेठिल्ले पृथिव्याः अधस्तनं चरमान्तं, एतत् नीचे के चरमान्त का व्यवधानात्मक चरिमंते, एस णं एगणासोई एकोनाशीति योजनसहस्राणि अबाधया अन्तर उन्नासी हजार योजन का है।' जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे अन्तरं प्रज्ञप्तम् । पण्णत्ते।
२. एवं केउस्सवि
ईसरस्सवि।
जूयस्सवि एवं केतुकस्यापि
ईश्वरस्यापि ।
यूपस्यापि
३. छट्ठोए पुढवीए बहुमज्झदेसभायाओ षष्ठ्याः पृथिव्याः बहुमध्यदेशभागात्
छटुस्स घणोदहिस्स हेट्ठिल्ले षष्ठस्य घनोदधेः अधस्तन चरमान्तं, चरिमंते, एस णं एगूणासोति एतत् एकोनाशीति योजनसहस्राणि जोयणसहस्साई अवाहाए अंतरे अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम् । पण्णत्ते।
२. इसी प्रकार केतु पातालकलश, यूप पातालकलश और ईश्वर पातालकलश
के विषय में जानना चाहिए।' ३. छठी पृथ्वी के बहुमध्यदेशभाग से छठे
धनोदधि के नीचे के चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर उन्नासी हजार योजन' का है।
४. जंबुद्दोवस्स णं दोवस्स बारस्स य जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य द्वारस्य च द्वारस्य ४. जम्बूद्वीप द्वीप के प्रत्येक द्वार का
बारस्स य एस णं एगूणासोइं च एतत् एकोनाशोति योजनसहस्राणि व्यवधानात्मक अन्तर कुछ अधिक जायणसहस्साइं साइरेगाइं सातिरेकाणि अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम् । उन्नासी हजार योजन' का है। अबाहाए अंतरे पण्णत्ते।
टिप्पण
१,२. उन्नासी हजार योजन (एगूणासीइं जोयणसहस्साई)
वडवामुख आदि चार पातालकलश पूर्व आदि चार दिशाओं में हैं। रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है। उसमें से एक हजार योजन समुद्रगत है। पातालकलशों की अवगाहना एक लाख योजना की है। स अवगाहना को छोड़ देने पर कलशों के चरमान्त से पृथ्वी का चरमान्त उन्नासी हजार रह जाता है।
१ समवायांगवृत्ति, पन ८२।
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