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समवायो
समवाय ३३ : टिप्पण ३. रसित (रसितं-रसितं)
रसित-दाडिम, आम्रफल आदि ।' ४. अनसुना (अपडिसुणेत्ता)
__ अप्रतिश्रवण के विषय में दो पाठ प्राप्त हैं-एक बारहवीं आशातना का पाठ है और दूसरा प्रस्तुत पाठ। इस पाठ में रानिक मुनि के प्रति उपेक्षा या अवज्ञा का भाव झलकता है और पूर्वपाठ में मायावृत्ति की झलक है। प्रवचनसारोद्धार के
अनुसार बारहवां पाठ रात्री विषयक और प्रस्तुत पाठ दिवस विषयक है। ५. अनुज्ञापित नहीं करता (अणणुण्णवेत्ता)
प्रस्तुत सूत्र की वृत्ति में 'अणणुण्णवेत्ता' की व्याख्या प्राप्त नहीं है । प्रवचनसारोद्धार के अनुसार इसका अर्थ यह होना चाहिए कि रात्निक के उपकरणों का पैरों से संघटन हो जाने पर जो शैक्ष रात्निक से क्षमायाचना नहीं करता, वह आशातना का भागी होता है।'
तत्कालीन परम्परा के अनुसार क्षमायाचना के समय संघट्टित उपकरणों का हाथ से स्पर्श किया जाता था। ६. कुछ विशेष न्यून से (किंचिविसेसूणेहि)
यहां कुछ विशेष न्यून से एक हजार योजन न्यून विवक्षित है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में चक्षुस्पर्श का प्रमाण ३२००१०४ + २३योजन बताया है। ७. अप्रतिष्ठान नरक (अप्पइट्ठाण-नरए)
सातवीं पृथ्वी में पांच नरकावास हैं। उसमें से चार का उल्लेख पूर्व सूत्र में हुआ है। यह उसका पांचवां नरकावास
१. प्रवचनसारोद्धार, पु०३४। २. वही, ९/११:
अप्पडिसुणणे नवरमिणं दिवस विसमि । ३. वही, २/१४८, पृ० ३२। ४. वही, पृ. ३४। 1. समवायांगवृत्ति, पन्न ५६, १७।
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