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समवानो
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समवाय २२ : टिप्पण
जाता है। 'समभिरूढ़' और 'एवंभूत'-ये दोनों शब्द-नय हैं। इस प्रकार सात नय संक्षेप में चार बन जाते हैं। इन चार नयों से विचार करने की पद्धति जैन-आगमों की अपनी है। इन चार प्रकार की सूत्र परिपाटिओं में प्रथम और चतुर्थ
परिपाटी जैन आगमों की मौलिक पद्धति है । द्वितीय और तृतीय परिपाटी दूसरे संप्रदायों से गृहीत है। ४. पुद्गल-परिणाम [पोग्गलपरिणामे] :
पुद्गल-परिणाम का अर्थ है-पुद्गलों का धर्म । वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के आधार पर उनके बीस भेद होते हैंवर्ण-पांच, गंध-दो, रस-पांच, और स्पर्श-आठ । प्रस्तुत आलापक में बाईस परिणामों का उल्लेख है । गुरुलघुपरिणाम
और अगुरुलघुपरिणाम-इन दो का अतिरिक्त समावेश किया गया है। वृत्तिकार ने लिखा है कि गुरुलघुद्रव्य होता है तिर्यग्गति करने वाला पवन आदि और अगुरुलघु होता है-स्थिर सिद्धिक्षेत्र तथा घंटाकाररूप में व्यवस्थित ज्योतिष्क विमान।
१. समवायांगवृत्ति, पत्र १०: पुद्गलानाम्-अण्वादीनां परिणामो-धर्मः पुद्गलपरिणामः, स च वर्णपञ्चकगन्धद्वयरसपञ्चस्पर्शाष्टकभेदाद्विशतिधा तथा गुरुलधुरगुरुलघु इति भेदद्वयक्षेपाद् द्वाविंशतिः तत्र गुरुलधु द्रव्यं यत्तिर्यगामि वाय्वादि, अगुरुलधुर्यत् स्थिरं सिद्धिक्षेत्र घण्टाकारव्यवस्थितज्योतिष्कविमानानीति ।
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