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समवाश्रो
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२. सूत्र २ :
गुणस्थान चौदह हैं । उनमें आठवां गुणस्थान निवृत्तिबादर है । जिसमें स्थूल कषाय की निवृत्ति होती है, उसे निवृत्तिबादर गुणस्थान कहा जाता है । इस अवस्था में आत्मा स्थूलरूप से कषायों से मुक्त हो जाती है ।
मोहनीय कर्म की अठाईस प्रकृतियां हैं। आठवें गुणस्थानवर्ती मुनि इनमें से सात प्रकृतियों - कषाय-चतुष्क तथा दर्शनत्रिक को क्षीण कर देता है
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समवाय २१ : टिप्पण
१ कषाय- चतुष्क - अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ ।
२. दर्शन - त्रिक- सम्यक्त्व मोह, मिथ्यात्व मोह और मिश्र मोह ।
शेष इक्कीस प्रकृतियां सत्ता में होती हैं। प्रस्तुत आलापक में उनका निर्देश है ।
'कम्मंसा' --- कमश का अर्थ है- उत्तर प्रकृतियां और 'संतकम्मा'- सत्कर्म का अर्थ है- सत्तावस्था में विद्यमान कर्म । '
१. समवायांगवृति पत्र ३८
निवृत्तिबादरस्य - अपूर्वं करणस्याष्टमगुणस्थान वत्तिन इत्यर्थः, णं वाक्यालङ्कारे, क्षीणं सप्तकम् - प्रनन्तानुबन्धि चतुष्टयदर्शनत्रयलक्षणं यस्य स तथा तस्य, मोहनीयस्य कर्मणः एकविंशति: कमीशा प्रप्रत्याख्यानादिकषायद्वादशनोकषायनवकरूपा उत्तरप्रकृतयः सत्कर्म - सत्तावस्थं कर्म प्रज्ञप्तमिति ।
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