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________________ समवाश्रो १२४ २. सूत्र २ : गुणस्थान चौदह हैं । उनमें आठवां गुणस्थान निवृत्तिबादर है । जिसमें स्थूल कषाय की निवृत्ति होती है, उसे निवृत्तिबादर गुणस्थान कहा जाता है । इस अवस्था में आत्मा स्थूलरूप से कषायों से मुक्त हो जाती है । मोहनीय कर्म की अठाईस प्रकृतियां हैं। आठवें गुणस्थानवर्ती मुनि इनमें से सात प्रकृतियों - कषाय-चतुष्क तथा दर्शनत्रिक को क्षीण कर देता है Jain Education International समवाय २१ : टिप्पण १ कषाय- चतुष्क - अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ । २. दर्शन - त्रिक- सम्यक्त्व मोह, मिथ्यात्व मोह और मिश्र मोह । शेष इक्कीस प्रकृतियां सत्ता में होती हैं। प्रस्तुत आलापक में उनका निर्देश है । 'कम्मंसा' --- कमश का अर्थ है- उत्तर प्रकृतियां और 'संतकम्मा'- सत्कर्म का अर्थ है- सत्तावस्था में विद्यमान कर्म । ' १. समवायांगवृति पत्र ३८ निवृत्तिबादरस्य - अपूर्वं करणस्याष्टमगुणस्थान वत्तिन इत्यर्थः, णं वाक्यालङ्कारे, क्षीणं सप्तकम् - प्रनन्तानुबन्धि चतुष्टयदर्शनत्रयलक्षणं यस्य स तथा तस्य, मोहनीयस्य कर्मणः एकविंशति: कमीशा प्रप्रत्याख्यानादिकषायद्वादशनोकषायनवकरूपा उत्तरप्रकृतयः सत्कर्म - सत्तावस्थं कर्म प्रज्ञप्तमिति । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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