Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्योंका ऐतिहासिक सार
१५ कर दशोंदिशाओंके संघोंको कुंकुम-पत्रीयों द्वारा आमंत्रित किये, संघ आये।
प्रसिद्ध खीमड कुलके लक्ष्मीधरके पुत्र आंबाशाहकी पत्नीकी 'कुक्षि सरोवरसे उत्पन्न राजहंसके सादृश पद्मसूरिजी को सं०१३८६ ज्येष्ठ शुक्ला षष्ठी सोमवारको ध्वजा पताका, तोरण वंदनमालादिसे अलंकृत आदीश्वर जिनालयमें नांन्दिस्थापन विधिसह श्री सरस्वती कंठाभरण तरुण प्रभाचार्य (षडावश्यक बालावबोधकर्ता) ने जिनकुशल सूरिजीके पदपर स्थापित कर जिनपद्म सूरि नाम प्रसिद्ध किया। उस समय चारों ओर जयजय शब्द हो रहा था। रमणियां हर्षसे नृत्य कर रहीं थीं। लोगोंके हृदयमें हर्षका पार न था। शाह हरिपालने संघभक्ति (स्वामिवात्सल्यादि) एवं गुरुभक्ति ( वस्त्रदानादि) के साथ युगप्रधान पद महोत्सवं बड़े समारोहके साथ किया।
पाटण संघने आपको (बालधवल) कुर्चाल सरस्वती विरुद्ध दिया । (पृ० ४७)
जिनचन्द्र सूरि (उ० गुर्वावलिमें)
जिनोदय सूरि (पृ० ३८४ से ३६४) चन्द्रगच्छ और वज्रशाखामें श्री अभयदेवसूरिजी हुए उनके पट्टानुक्रममें सरस्वती कण्ठाभरण जिनवल्लभ सूरि, विधिमार्ग प्रकाशक जिनदत्तसूरि, कामदेव सादृश रूपवान् जिनचन्दसूरि, वादिगज केशरी जिनपत्ति सुरि, भक्तजन कल्पवृक्ष जिनेश्वर सूरि, सकलकला सम्पन्न जिनप्रबोध सूरि, भवोदधिपोत जिनचन्द्र सूरि, सिन्धुदेशमें विहित
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