Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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श्रोजिनसिंहसूरि गीतानि बलि परब दिवाली महोत्सव, रलीय रंग बधामणा ।। चउमास च्यारे मास जिनसिंघ, सूरि संपद आगला ।
वीनवइ वाचक "समय सुन्दर", काती गुरु चढ़ती कला ॥४॥
(९) गहुंलो आचारिज तुमे मन मोहियो, तुमे जगि मोहन वेलि । सुन्दर रूप सुहामणो, बचन सुधारस केलि ॥ १ ॥आ०॥ राय राणा सब मोहिया, मोह्यो अकबर साह रे । नर नारी रा मन मोहिया, महिमा महियल मांह रे ॥ २॥आ०॥ कामण मोहन नवि करौ, सुधा दीसो छो साधु रे । मोहनगारा गुण तुम तणा, ए परमारथ साध रे ॥ ३ ॥आ०॥ गुण देखी राचे सहुको, अवगुण राचे न कोय रे । हार सहुको हियड धरै, नेउर पाय तलि होय रे ॥ ४ ॥आ०॥ गुणवंत रे गुरु अम्हतणा, जिनसिंहसूरि गुरुराज रे । ज्ञान क्रिया गुण निर्मला, “समय सुन्दर" सरताज रे ॥ ५ ॥आ०॥
(१०) गुरुवाणी महिमा गीत गुरु वाणी (जग) सगलउ मोहीयउ, साचा मोहण वेलो जी। सांभलता सहुनइ सुख संपजइ, जाणि अमी रस रेलो जो गुरु०॥ बाबन चंदन तई अति सीतली, निरमल गंग तरंगो जी। 'पाप पखालइ भवियण जण तणा, लागो मुझ मन रंगो जी ।२।गुरु०॥
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