Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta

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Page 651
________________ ४५६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह विनडदि ३६५ विडम्बित चक्क ३६. वाय-विशेष करता है वृन्दारक २७१ देवता विनाण ३३ विज्ञान | वे उचिय ३३ विकुना को विन्नागी १४, १६६ विज्ञानी वेगड़ ३१३,३१४ विरुद्ध और विप्फुरइ ५ प्रगद होना, नाम स्फुगयमान वेढ़ ३५५ लड़ाई होना, स्फुटत वेयावच्चसार ११५ वैयावृत्य रूपी होना। सेवा विभूपीय ४ विभषित वेहलि. ३९५ विलम्ब न विमा गइ १६८,३९४ विमर्श करता है करके,शीघ्र विमासे ३२१ सोचकर श विन्हें ३१० दोनों विहोत १९१ विहावाला शाश्वतो ३०० शाश्वत विवहप्परि ३१ विविध प्रकारसे | शीयल ६२ शील विविह २ वि वध ४१० श्रवना, गिरना विवहु . २७ वि वध टपकना, बरमना विवाहल ३३९ विवाह का श्रीकार ४१५ उत्कृष्ट, उत्तम काव्य श्रतज्ञाने २७० श्रत (शास्त्रीय) विश्वानर ८५ वैश्वानर ज्ञानसे विष पद १९० कलह, विरोध विसहर ५६ विषधर | षटकाया १०० छ शरीर, विहलो ४१५ शीघ्र षडावश्यक २७२ सामायका द विहाणु ३७१ प्रभात छ आवश्यक कार्य विहि १ विधि विहिमग्ग ३६ विधिमार्ग विहूणा .८४ रहित वीटी ३५५ वेष्टित किया सइंहथ १४६ अपने हाथसे वीवाहलउ ३९० विगहलो, वह काव्य जिसमें सउन्नउ ३६६ सदा उन्नत किसी विवाह सकर्ड १,३९८ सकना, शक्त का वर्णन हो । सखर १९५ अच्छा श्रवै Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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