Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta

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Page 689
________________ ४६४ ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह नी द्र पृष्ट पंक्ति अशुद्ध शुद्ध | पृष्ट पंक्ति अशुद्ध १८८ १९ साचडार साचउरि | २२१ १७ दुरयह दुरियह १९० ६ दिन दिनदिन २२२ ९ सुविहव सुविहित १९५ १० सूर सूरि " १३ करो कों " ११ थापना थापना २२७ ६ नमः नमउ १९७ १८ ०ना | " ९ सूरिश्वर सूरीश्वर १९८ २२ संपूर्णभ संपूर्णम् २२८ ८ संवति संप्रति १९९ ५ जावालपुरे जावालिपुरे " १५ कुमद्र कुमुद " ११ स्तथा तथा २३० १ श्री० ढाल:-श्री. " १२ द्वोपे द्वीपे " ११ जिनरायो जिनराजो " १३ पुरे २३६ ११ साह लाह " २० प्रौढः प्र० प्रौढ प्र० २३७ ६ हीडोलइ होडोलह " १९ नाम्नां नाम्ना " ७ अवसार अवसर २०० ६ त्वां ०स्त्वां २३९ ३ बालावी बोलावी " १० सागरा सागराः | " ८ ०विचइम विचमह २०१ ४ देखिने देखिने रे " ८ मको मूकी " १० नूर नूर रे २४० ६ सोहणपण सीहपणइ २०२ ६ परमात्म परमा २४१ ६ पूज्य श्रीपूज्य २०३ ६ धj घणं | " ८ सहेरउ सेहरउ २०९ ६ ब वा० २४२ ४से१३ स० __ सु० २१२ ५ अधिक अधिक २४३ १५ श्रा० श्रो० २१८ १६ मधुर मधुर | २४४ १६ स्वग स्वर्ग २१९ ४ अतले अवर २५३ १३ जाणिन जाणिनइ " ४ ने (?) छह नेछई २५४ ११ पादुका अधिक पादुका " ६ पद्धति पद्धति " १२ धरि अधिक घरि " " जाइसर जईसर २५६ ९ लुलि लुलि लुलि २२० १६ देस दस २६० ७ ०पाध्याय० ०पाध्याया० २२१ १ दुर्बलिकापक्षः दुर्बलिका २६३ ६ मावतां, रुडुंख खमावतां, पुष्प २५६ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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