Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta

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Page 686
________________ Annnn Nnnnnnnnn सूरि विस शुद्धाशुद्धि पत्रक ४६१ पृष्ट पंक्ति अशुद्ध शुद्ध पृष्ट पंक्ति अशुद्ध २३ १२ सहलउ किउ इत्थु ३० ६ पख पक्खी कलि तिह ३० ५ वहियं विहियं सहलउ तिहि किट ३० ५ पंचमि(घाउ) पंचमियाओ इत्थु कलि ३० ८ उज्जेण उज्जेणी ३० १३ जिणदत्त :जिणदत्त सूरि २४ ५ विसम ३० १३ सुपहु सुपहू २४ १३ परकरिय पखिरिय ३० १४ विन्नाउ विन्नाओ २५ १० गच्छाहवद गच्छाहिवइ ३० १८ सय सोय २५ १७ जेता जिता० ३० १८ जवाईय जु वाईय २५ १७ इग्यारह इग्यारहसय ३० २१ फुग्गण फरगुण २६ १ वइसाखयइ वइसाख्यइ ३० २२ वजयाणंदो विजयाणंदो २६ ७ आसोज आसोजवदि ३० २२ निज्जणिय निज्जिणिय २६ ८ अनुतर अनुतेर ३१ ५ ता(?)उन्हउं ताउन्हडं २७ १ वत्थिरि वित्थरि ३१ ६ ति(लि) हि लिवि २७ ७ लोपआयरिय लोगह ३१ ७ रमनरमणि नरमणि आयरिय ३१ ८ जिणेसर(७वीं पंक्तिमेंपढ़ो) २७ १६ सूरि सूर ३१ ८ नं दिन २८ ८ झदाउत सुखसंसि ३१ ९ पवठ्ठ पय रूदाउत सुपसंसि ३१ ११ अवहि अविहि २८ ९ पनरेतिरइ पनरोतिरइ ३१ २२ स स हंस २८ १० रतनागरवरसि ३२ ३ पट्ट पहु रतना पुन्निग उच्छव रसि | ३२ ५ एने एन २९ ६ सूरहि ३२ ८ बडआरुय बडयारू २८ १८ अठारहवी पंक्तिको ३२ १० वंच चंच । सोलहवीं पंक्ति पढ़ो ३२ ११ नसि • निसि २९ १४ सुविह तह सुविहि तह ३२ २० वडवि चडवि ३० ३ तिलउ निलउ ३२ २० धितिहि वितिहि ३० ३ लठिवर लब्धिवर ३३ १ गुडिर गुडिय ur urv9 9 नंदिन Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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