Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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श्रीजिनसिंहसूरि गीतानि
१३३ तुम पउढयां माहरे किम सरइ, पउडण नी नही वार हो ।पूजजी०।।
नयण निहालउ नेह सुं, बइठउ सहू परिवार हो । आंकणी० ।। दीर्घ नोंद निवारीयइ, धर्म तगइ प्रस्ताव हो । पूजजो० ॥
राइ प्रायच्छित साचवउ, पडिकमणउ शुभ भाव हो ॥२॥०॥ झालर बाजी देहरइ, वाजउ संख पडूर हो ।
तरवर पंखी जागीया, जागउ सुगुरु सनूर हो ॥शापू०।। प्रहफाटी पगडउ थयउ, हीयउ पिण फाडण हार हो ।
बोलायां बोलइ नहों, कइ रूठउ करतार हो ॥४॥पू०।। समरइ सगला उंबरा, "मुकुरवखान" नबाब हो ॥पू०।। ___ कागल देस विदेश ना, वांची करइ (उ?) जबाब हो ॥५॥पू०।। लहुडा चेला लाडिला, मी(वि?)नति करइ विशेष हो ॥पू०॥
पाटी परवाडि दीजीयइ, मुहडइ सामउ देख हो ॥६॥पू०॥ 'ए पातिसाही मेवडउ, ऊभो करई अरदास हो ॥पू०।।
एक घड़ी पडद्म नहीं, चालउ श्री जो पास हो ॥७॥पू०॥ आवी वांदिवा श्राविका, ओसवाल श्रीमाल हो ॥०॥
यथासमाधि कहइ करउ, एक वखाण रसाल हो ॥८॥०॥ बोलणहारउ चलि गयउ, रह्या बोलावण हार हो ॥पू०॥
___ आप सवारथ सीझव्यउ, पाम्यउ सुरलोक सार हो ॥धापू०।। मौन ग्राउ मनचितवी, कीधउ कोइ आलोच हो ॥पू०॥
सगला शिष्य नवाजीया, भागउ मूल थी सोच हो ॥१०॥पू०।। पाट तुम्हारइ प्रतपीयउ, श्रीजिनराज सनूर हो ॥पू०॥
आचारिज अधिकी कला, श्रीजिनसागर सूरि हो ॥पू०॥११॥ भवि २ थाज्यो वंदना, श्रीजिनसिंह सूरिंद हो ।पू०।।
सानिध करज्यो सर्वदा, 'हरपनन्दन' आणंद हो ॥१२॥पू०॥
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