Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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श्रोजिनरतनसूरि गीतानि २४५ ॥ जिन रत्नसूरि पट्टधर जिनचन्द्रसूरि गीतानि ॥
'श्री जिनचन्द सूरोसरू' रे, गच्छ नायक गुण जाण रे । सोभागी। महियल मई महिमा घणी रे लाल, जाणइ राणो राण रे सो०॥१॥श्री० सुन्दर रूप सुहामणो रे, बखतावर बड़ भाग रे । सो०।। 'बार वरस' नइ ऊपनउ रे लाल,लघुवइ मनि वह राग रे सो०॥२॥श्री श्री 'जिनरत्न' सूरीसर आपियउ रे, सई हथ संयम भार रे ॥सो॥ श्री संघइ उच्छव कियउ रे लाल, 'जेसलमेर' मझार रे सो० ॥३॥श्री गौतम जिम गुण गहगहइ रे, साह 'सहसमल' नन्द रे । सो० । 'गणधर गोतइ' गुग निलो रे लाल,दरसण परमानन्द रे । सो॥४॥श्री
श्री 'जिनरत्न सूरीसरई' रे, दीधउ अविचल पाट रे । सो० । वधतइ वरस 'अढार' मइ रे लाल, सेवइ मुनिवर थाट रे ।सो।।५||श्री 'सिन्दूर दे' सुत चिर जयउ रे लाल, गच्छ खरतर सिणगार रे ।सो। शीतल चन्द तणी परइ रे लाल, संवेगो सिरदार रे । सो० ॥६॥श्रो० श्री 'जिनरत्न' पटोधरू रे, सहुनो पूरइ आस रे । सो० । धर मन हर्ष ऊमाहलउ रे लाल, पभगइ :विद्याविलास' रे।सो०॥७॥श्री
॥ इति श्री वर्तमान श्री जिनचन्द्र सूरि गीतम् ॥
॥ साध्वी रत्नमाला वाचनार्थम् ।।
श्री जिनचन्द' सूरीश्वर वंदीयइं रे, गरूयउ गछपति गुणमणि गेह रे। मोहनगारी मूरति ताहरी रे, घडोय विधाता सईहथि एह रे । १।श्री० बदनि कमल सरसति वासउ कीयो रे,
अड सिद्धि आवि रही जसु हाथि रे ।
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